जय माँ
कभी कभी स्वयं के भक्त ज्ञानी सेवक उपासक आदि होने का मिथ्या अहंकार भ्रम हो जाता है जबकि इसका निर्णय तो ईश्वर के हाँथ में है।
भक्त को सदैव ये भाव रखना चाहिये कि मैं कुछ नहीं हूँ , किसी योग्य नहीं हूं ईश्वर कृपा है कि उसने अपने मार्ग पर चलने के लिये मुझे चुना वरना न जाने इस जीवन मे क्या क्या पाप समाय हुये हैं। सतबुद्धि भी ईश्वर की कृपा है।
यदि हम वास्तव में ईश्वर का प्रेम कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें हर वक्त अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास कर ईश्वर के योग्य बनने के लिये अभ्यास और प्रार्थना करना चाहिए।
गुरु ईश्वर सन्त और शास्त्र इनकी आज्ञा में रहना चाहिए तभी वास्तव में ये जीवन सफल है अन्यथा जथा मति तथा गति।
जगदम्ब भवानी