भवद्भक्ति: स्फीता भवतु मम सैव प्रशमये-
दशेषक्लेशौघं न खलु हृदि संदेहकणिका ।
न चेद् व्यासस्ययोक्तिस्तव च वचनं नैगमवचो ।
भवेन्मिथ्या रथ्यापुरुषवचनप्रायमखिलम् ।।
(श्रीनारायणीयम् ,1/3/5)
'(नारायण!) आपमें मेरी भक्ति बढ़ती रहे; वही मेरे सम्पूर्ण कष्टों का विनाश कर सकती है।इस विषयमें लेशमात्र संदेहके लिए भी मेरे हृदय में स्थान नहीं है।यदि ऐसी बात नहीं हुई तो व्यासजीका कथन,आपका वचन और वेद-वाक्य- ये सब-के-सब सड़कों पर बकने वाले पुरुषों के वचनों के समान मिथ्या हो जायेंगे।'
श्री भगवान विष्णुकी कृपा से आपका दिन मङ्गलमय हो