जयति भूनन्दिनी-शोच-मोचन
विपिन-दलन घननादवश विगतशंका ।
लूमलीलाSनल-ज्वालमालाकुलित
होलिकाकरण लंकेश -लंका ।।
जयति सौमित्र-रघुनंदनानंदकर,
ऋक्ष-कपि-कटक-संघट-विधायी ।
बद्ध-वारिधि-सेतु अमर-मंगल-हेतु,
भानुकुलकेतु-रण-विजयदायी ।।
(विनयपत्रिका,'हनुमत-स्तुति'25/5-6)
अर्थ-
'श्री सीताजीको रामका संदेशा सुनाकर उनकी चिंता दूर करने वाले और रावणके अशोकवन को उजाड़नेवाले हो।तुम अपने को निशंक होकर मेघनादसे ब्रह्मास्त्रमें बँधवा लिया था तथा अपनी पूँछ की लीलासे अग्निकी धधकती हुई लपटों से व्याकुल हुए रावण की लंका में चारो ओर होली जला दी। तुम श्रीराम-लक्ष्मण को आनंददेनेवाले,रीछ और बंदरोंकी सेना इकट्ठीकर समुद्रपर पुल बाँधनेवाले,देवताओं का कल्याणकरनेवाले और सूर्यकुल-केतु श्रीरामजीको संग्राममें विजय-लाभ कराने वाले हो। तुम्हारी जय हो।'
श्रीहनुमत्कृपासे आपका दिन मंगलमय हो