जगत जननी मां विंध्यवासिनी का अलौकिक दिव्य दर्शन
-------
न जानामि दानं न च ध्यानयोगं न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम् |
न जानामि पूजां न च न्यासयोगं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥
---------------
हे भवानी ! मैं न दान देना जानता हूँ और न ध्यानमार्ग का ही मुझे पता है, तन्त्र और स्तोत्र-मन्त्रों का भी मुझे ज्ञान नहीं है, पूजा तथा न्यास आदि की क्रियाओं से तो मैं एकदम कोरा हूँ, अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो ।
जय मां विंध्यवासिनी।