तत् सूर्यस्य देवत्वं तन्महित्वं
मध्या कर्तोर्विततं सं जभार ।
यदेदयुक्तं हरित: सधस्था-
दाद्रात्री वासस्तनुते सिमस्मै ।।
(ऋक्.1/115/4)
अर्थ-
" यह भगवान् सूर्यका देवत्व और महिमा है कि वे अपने कार्यके बीचमें ही अपने फैले हुए रश्मिजाल को समेट लेते हैं।जिस समय वह अपने कान्तिमान्,रश्मिरूप अश्वों को अपने रथसे समेटकर अपने में संयुक्त कर लेते हैं,उसी समय रात्रि समस्त जगत के लिए अपना अंधकाररूप वस्त्र बुनती है।"
आदिदेव भगवान् भास्कर की कृपासे आपका दिन मङ्गलमय हो