जगत जननी मां विंध्यवासिनी का रात्रि दिव्य दर्शन ।
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विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये । अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥
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हे शरण्ये ! तुम विवाद, विषाद, प्रमाद, परदेश, जल, अनल, पर्वत, वन तथा शत्रुओं के माध्य में सदा ही मेरी रक्षा करो, हे भवानी ! अब केवल तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्हीं मेरी गति हो ।
जय मां विंध्यवासिनी ।