जयति सुविशाल-विकराल-विग्रह,
वज्रसार सर्वांग भुजदण्ड भारी ।
कुलिसनख,दशनवर लसत,
बालधि बृहद,वैरि-शस्त्रास्त्रधर कुधरधारी ।।
(गोस्वामीजी,विनय-पत्रिका,हनुमत-स्तुति26/3)
अर्थ-
"हे हनुमानजी!आपकी जय हो।आपका शरीर बड़ा विशाल और भयंकर है,प्रत्येक अंग बज्र के समान है,भुजदण्ड बड़े भारी हैं तथा बज्र के समान नख और सुंदर दांत शोभित हो रहे हैं। आपकी पूँछ बड़ी लम्बी है,शत्रुओं के संहार के लिए आप अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र और पर्वतों को लिए रहते हैं। आपकी जय हो।"
श्री हनुमत कृपासे आपका दिन मङ्गलमय हो