shashikant pandey's Album: Wall Photos

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*सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।*
*अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥*
*श्रीमद्भागवत गीता--18/66*
संपूर्ण धर्मों को मुझमें त्यागकर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान, सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा। मैं तुझे संपूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर।
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कह रहे है कि धर्मयुद्ध है और दूसरी ओर कह रहे है कि सभी धर्मों को त्यागकर दोनों एक दूसरे के विपरीत लग रहे है शब्द लेकिन गहराई से सोचे तो दोनों का लक्ष्य एक ही है।
भगवान श्रीकृष्ण कह रहे है कि तू सभी धर्मों को त्यागकर यहाँ उन धर्मों को त्यागने की बात कर रहे है जो मानव को तोड़ने का कार्य करती है जो भटकाने का कार्य करती है। आज मानव पूजा-उपवास कर रहे है अच्छी बात है लेकिन जब लोग बाँटने के लिए आगे आ जाते है तो धर्म से मानव विमुख हो जाता है। भगवान श्रीकृष्ण 11 अध्याय के 53 वां श्लोक में कहते है कि तू जिस रूप में मुझको देखा है वो रूप *न तो वेदों के अध्ययन से न तप से न दान से न यज्ञ से देखा जा सकता है।* तो क्या ये व्रत-उपवास,पूजा-पाठ,दान-पुण्य,यज्ञ-हवन सब बेकार है अगर इनके द्वारा भगवान का दर्शन नही होगा तो❓❓