या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि: ।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वं ।।
(श्रीदुर्गासप्तशती,4/5)
अर्थ-
" जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूपसे,पापियोंके यहाँदरिद्रतासे,शुद्ध अंत:करणवाले पुरुषों के हृदयमें बुद्धिरूपसे,सत्पुरुषोंमें श्रद्धारूपसे तथा कुलीन मनुष्यमें लज्जारूपसे निवास करती हैं,उन आप भगवती दुर्गाको हम नमस्कार करते हैं। देवि! आप सम्पूर्ण विश्वका पालन कीजिये ।"
माँ भगवती की कृपासे आपका दिन मङ्गलमय हो