भारत मे काशी क्षेत्र की बड़ी महिमा है। कहा जाता है कि वही भगवान शिव का स्थान है जहाँ शिव नित्य निवास करते है। यह भी कहा जाता है कि यह नगरी भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी है। यहाँ देह त्यागने पर जीव मुक्त हो जाता है। इसलिए इसे "अविमुक्त क्षेत्र" कहते है। यहाँ देह त्यागने पर भगवान शंकर मरणोन्मुख प्राणी को तारक मंत्र सुनाते है जिससे जीव को तत्वज्ञान हो जाता है जिससे उसके सामने अपना ब्रह्म-स्वरूप प्रकाशित हो जाता है। यही पर पतित पावनी गंगा है जो जीव के पापों का नाश करने वाली है। ये भगवान विश्वनाथ ही तारक-ब्रह्म है जो सम्पूर्ण प्राणियों को मोक्ष प्रदान करते है। वे स्वयं शिवरूप है। काशी की गणना सप्तपुरियों ( काशी, कांची, हरिद्वार, अयोध्या, द्वारिका, मथुरा, उज्जैन) में सर्वप्रथम होती है। ये सातों ही मोक्षदायक है। काशी की गणना पंचकाशी (वाराणसी, गुप्तकाशी, उत्तरकाशी, तेन्काशी, शिवकाशी ) में भी प्रथम होती है। यह 51 सिद्ध पीठो में से एक है। काशी की इतनी महिमा होने के कारण भारत मे यह प्रसिद्ध तीर्थ बन गया है।
किन्तु भगवान शिव कहते है कि सबसे बड़ा तीर्थ तो गुरुदेव ही है जिनके कारण व जिनकी कृपा से ये सब फल अनायास ही प्राप्त हो जाते है। जो गुरुदेव में पूर्ण श्रद्धा रखकर उनकी सेवा करता है तो उनका निवास स्थान ही काशी क्षेत्र बन जाता है, उनका चरणामृत ही गंगा जी है, वे ही भगवान विश्वेश्वर है जो तारक-ब्रह्म है जो सबको मोक्ष प्रदान करने वाले है। गुरु से ही इन सबका फल अनायास ही प्राप्त हो जाता है। ऐसी श्री गुरु की महिमा है।
जगदम्ब भवानी