जय माँ
नमः सर्व्स्वरुपिन्यै जग्ध्दात्रै नमो नमः।
आद्यायै कालिकायै ते कर्त्र्ये हर्त्र्ये नमो नमः ।।
सृष्टि के पूर्व एक मात्र तुम ही तमो रूप में विद्यमान थी, तुम्हारा वह अव्यक्त रूप मन और वाणी की पहुँच के परे है। पश्चात् परब्रह्म की सिसृक्षा के अनुसार तुम्हारे ही अन्य रूप में तमो रूप शक्ति से निखिल जगत की सृष्टि होती है।महतत्व से लेकर पञ्च महाभूत पर्यन्त यह समस्त जगत तुम्ही से सृष्ट होता है। सब कारणों का कारण वह ब्रह्म तो निमित्त मात्र है। वह ब्रह्म सत्वस्वरुप और ज्ञानस्वरूप है,वह अनादि,अनन्त और मन-वाणी के अगोचर है। हे महायोगिनी ! तुम उसकी इच्छा मात्र का अवलम्बन कर इस चराचर जगत की सृष्टि, पालन,और संहार करती हो। जगत-संहारकारी महाकाल तुम्हारा ही रुपमात्र है। प्रलयकाल में यह महाकाल समस्त जगत को ग्रास करेगा। सब प्राणियों को कलन अर्थात ग्रास करने के कारण वह महाकाल नाम से प्रकीर्तित होता है। तुम उस महाकाल का भी कलन अर्थात ग्रास कर जाती हो,इसलिए तुम्हारा नाम आद्याकालिका है। काल को ग्रास करने के कारण तुम्ही सबकी आदिभूता या कारणरूपा हो, इसी से तुम्हे सब आद्याकाली कहते है। फिर महाप्रलयकाल में वाणी और मन से अतीत तमोमय निराकार, अव्यक्तस्वरुप अवलम्बन करके एकमात्र तुम्ही विद्यमान रहती हो। तुम माया के द्वारा बहुत रूप ग्रहण करती हो,अतः तुम साकार होते हुए भी निराकार हो। तुम सबकी आदि हो,परन्तु स्वयं अनादि हो।तुम्ही सब की सृष्टि करने वाली,पालन करने वाली और संहार करने वाली हो।
जगदम्ब भवानी