जय माँ
श्री गुरु ही शिष्य को आत्मज्ञान कराते है। इस आत्मज्ञान से ही मनुष्य का अज्ञान जड़ से नष्ट हो जाता है। यह अज्ञान क्या है ? इस पंच भौतिक शरीर को ही अपना स्वरूप मान लेना तथा दृश्य भौतिक जगत को ही सृष्टि मान लेना। इस अज्ञान का निवारण केवल आत्मज्ञान से ही संभव है। अन्य कोई उपाय नही है। इस आत्मज्ञान से ही अनेक जन्मों के जो सिंचित कर्म है उनका निवारण हो जाता है। कर्मो के संस्कार चित्त में संग्रहित रहते है। आत्मज्ञान में जब चित्त ही नही रहता तो ये सभी संस्कार भी समाप्त हो जाते है जिससे पुनर्जन्म की संभावना ही सदा के लिए समाप्त हो जाती है। इस आत्मज्ञान से ही वैराग्य सिद्ध होता है। फिर संसार की सभी प्रकार की कामनाये, वासनाएं, आसक्ति आदि समाप्त हो जाती है। यही सच्चा वैराग्य है जो ज्ञान प्राप्ति के बाद ही घटित होता है। कपड़े बदलने एवं घर छोड़कर जंगल जाने को ही वैराग्य नही कहा जाता। मन से आसक्ति का त्याग ही वैराग्य है जो ज्ञान का ही फल है। ये सब कार्य श्री गुरुदेव के चरणामृत का पान करने से अर्थात उनकी शरण मे जाने से उनके द्वारा उपदिष्ट ज्ञान से अपने आप सिद्ध हो जाते है। ऐसी गुरु की महिमा है।
जगदम्ब भवानी