शंकर जी को जप करते देख पार्वती को आश्चर्य हुआ कि देवों के देव महादेव , भला किसका जप कर रहे हैं ?
पूछने पर महादेव ने कहा , ‘ विष्णुसहस्त्रनाम का ‘
पार्वती ने कहा , इन हजार नामों को साधारण मनुष्य भला कैसे जपेंगे ?
कोई एक नाम बनाइए , जो इन सहस्त्र नामों के बराबर हो और जपा जा सके।
महादेव ने कहा-
” राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे , सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने। ”
यानी राम-नाम सहस्त्र नामों के बराबर है।
शिव को राम (विष्णु) और राम (विष्णु) को शिव , अति प्रिय हैं।
रामायण काल मे भगवान राम ने शिव का दो बार आव्हान किया था ।
जब भगवान राम अपने गुरुदेव के साथ माता सीता के स्वयम्बर मे जा रहे थे तब उन्होने शिव की आराधना की थी और शिव प्रदत्त शक्ति के परिणाम स्वरूप भगवान राम ने स्वयम्बर मे शिव धनुष तोडा और माता सीता से विवाह किया।
दूसरी बार जब, सीता को लाने के क्रम मे समुद्र के किनारे रामेश्वरम मे शिव की पूजा की थी , और शिव की कृपा से ही रावण का वध किया – लंका पर विजय प्राप्त की ।
जो भोलेनाथ को प्रिय हैं , उनके स्मरण मात्र से भोलेनाथ अति प्रसन्न होते हैं ।
** शिव शाबर मंत्र –
” हरि ॐ नमः शिवाय, शिव गुरु रामाय ”
विधि –
इस मंत्र का जप शिव पंचाक्षारी मंत्र की भांति ही होता है …स्वयम सिद्ध मंत्र है ।
इसका जप करने से अनेक जन्म कृत पापों का नाश होता है ,
नित्य 11 माला जप करने पर भगवान शिव स्वयं ” गुरु ” की भांति साधक का मार्गदर्शन करते हैं।
इस मंत्र के प्रभाव से भगवान शिव एवं भगवान् श्री राम , दोनों की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
भगवान शिव , विष्णु , ब्रह्मा , शक्ति , राम और कृष्ण सब एक ही हैं।
केवल नाम रूप का भेद है , तत्व में कोई अंतर नहीं।
किसी भी नाम से उस परमात्मा की आराधना की जाए , वह उसी सच्चिदानन्द की उपासना है।
इस तत्व को न जानने के कारण भक्तों में आपसी मतभेद हो जाता है।
परमात्मा के किसी एक नाम रूप को अपना इष्ट मानकर , एकाग्रचित्त होकर उनकी भक्ति करते हुए अन्य देवों का उचित सम्मान व उनमें पूर्ण श्रद्धा रखनी चाहिए।
किसी भी अन्य देव की उपेक्षा करना या उनके प्रति उदासीन रहना स्वयं अपने इष्टदेव से उदासीन रहने के समान है।