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जय माँ
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सात्विक, राजस् और तामस ये तीन भेद अहंकार के है। तीन अहंकार की 3 शक्तियाँ है। वे ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति और अर्थ या द्रव्यशक्ति के नाम से विख्यात है। ज्ञानशक्ति का सात्विक अहंकार से, क्रियाशक्ति का राजस अहंकार से और द्रव्यशक्ति का तामस अहंकार से सम्बन्ध है।

तामसी द्रव्यशक्ति से शब्द, स्पर्श,रूप , रस और गन्ध - इन पाँच तन्मात्राओं की उत्पत्ति बतायी गयी है। आकाश का गुण शब्द , वायु का गुण स्पर्श , अग्नि का रूप, जल का रस और पृथ्वी का गुण गन्ध है। द्रव्यशक्ति से सम्बन्ध रखने वाले ये दसो एकत्रित होकर जब प्रकट होते है, तब इन्हें "तामस अहंकार से उत्पन्न सृष्टि"कहा जाता है।

राजस क्रियाशक्ति से जिनका प्रादुर्भाव होता है, वो है कान, त्वचा, जीभ, आँख और नासिका ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ तथा वाणी, हाथ, पैर, उपस्थ और गुदा ये पाँच कर्मेन्द्रियाँ तथा प्राण, अपान, व्यान, समान और उदान (पंच प्राण ) ये सभी क्रियाशक्ति से उत्पन्न होते है।प्रकट हुए इन पंद्रहों के समुदाय को " राजस सृष्टि" कहते है।इनके सभी साधन क्रियाशक्तिमय है।इनका उपादान कारण चिद्वृत्ति कही जाती है।

सात्विक अहंकार से सम्बन्ध रखने वाली जो ज्ञानशक्ति है, उससे दिशा, वायु, सूर्य, वरुण, अश्विनी कुमार, पाँच ज्ञानेंद्रियों के पाँच अधिष्ठाता देवता तथा बुद्धि प्रभृति अन्तःकरणो के अधिष्ठाता चंद्रमा, ब्रह्म, रूद्र, और चौथा क्षेत्रज्ञ तथा मन सहित ये पंद्रह प्रकट होते है। सात्विक अहंकार की की यह सृष्टि "सात्विक सृष्टि " के नाम से विख्यात है।
जय माता की !!
जय शिव शम्भू !!