*अपमान करना किसी के*
*स्वभाव में हो सकता है,*
*पर सम्मान करना*
*हमारे संस्कार में होना चाहिए.!!"*
*जिंदगी में इतनी शिद्दत से निभाओ अपना किरदार,*
*कि परदा गिरने के बाद भी तालीयाँ बजती रहे।।*
*परीक्षा संसार की करो, प्रतीक्षा परमात्मा की और समीक्षा अपनी करो...*
*पर हम परीक्षा परमात्मा की करते हैं,*
*प्रतीक्षा सुख की और समीक्षा दूसरों की करते हैं...*