हर एकादशी को मुख्य तौर से तुलसी पूजन किया जाता है। कहा जाता है कि जो मनुष्य तुलसी और श्री विष्णु जी की पूजा करते हैं, उनके पिछलों जन्मो के सब पाप नष्ट हो जाते हैं।
तुलसी के पौधे को भारत में इतना पवित्र माना गया है कि इसके बिना घर को पूर्ण नहीं कहा जा सकता।
तुलसी का पौधा घर में घर के किसी सदस्य की भाँति रहता है। घर के आँगन में तुलसी के पौधे के लिए विशेष स्थान बना होता है, जहाँ इसकी नित्य प्रतिदिन पूजा की जाती है। यहाँ तक कि घर में हर शुभ मौके, पर्व व त्यौहार पर तुलसी के पौधे को भी नई चुनरी ओढ़ाई जाती है।
तुलसी के पौधे के साथ और भी बहुत सारे रीति-रिवाज़, परंपराएँ जुड़ी हैं। तुलसी को घर में बेटी की तरह रखा जाता है और एक दिन तुलसी जी की भी बेटी की ही तरह घर से डोली भी उठती है। जी हाँ यह शादी बिल्कुल घर की किसी बेटी की ही तरह होती है। फ़र्क इतना होता है कि दूल्हे के रूप में मंदिर से भगवान आते हैं और उत्साह से सराबोर बाराती होते हैं प्रेमी भक्त।
कार्तिक मास में स्नान करने वाले स्त्रियाँ कार्तिक शुक्ल एकादशी का शालिग्रामजी और तुलसीजी का विवाह रचाती है ।
समस्त विधि विधान पुर्वक गाजे बाजे के साथ एक सुन्दर मण्डप के नीचे यह कार्य सम्पन्न होता है।
विवाह के समय स्त्रियाँ गीत तथा भजन गाती है । दरअसल, तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं।
कार्तिक शुक्ल नवमी,दशमी व एकादशी को व्रत एवं पूजन कर अगले दिन तुलसी का पौधा किसी ब्राह्मण को देना शुभ होता है।
शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपत्तियों के संतान नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें।