सृष्टि निर्माता ब्रह्मा के स्वरूप के बारे में हर आम श्रद्धालु परिचित होता है। हम सभी उनके चार सिरों के बारे में अच्छी तरह जानते हैं। इस ब्रह्माण्ड के रचयिता ब्रह्मा को चतुर्मुखी ब्रह्मा के नाम से ही जाना जाता है। किंतु आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि एक समय यही ब्रह्मा जी पांच सिर वाले हुआ करते थे।
सवाल यह उठता है कि यदि ब्रह्मा जी के पांच सिर थे तो फिर पांचवां सिर कहां चला गया? आखिर कैसे ब्रह्मा जी चतुर्मुखी ब्रह्मा के रूप में विख्यात हुए?
हिंदू धर्म के विविध आख्यानों में ब्रह्मा के पांचवें सिर के विनाश के रोचक प्रसंग दिए गए हैं। कुछ स्थानीय किंवदंतियां भी प्रचलित हैं, जिनसे इस प्रकरण पर काफी जानकारी प्राप्त होती है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, रति देवी के पति कामदेव ने ब्रह्मा जी की घोर उपासना की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें तीन ऐसे तीर प्रदान किए जिससे किसी को भी कामासक्त किया जा सकता था। कामदेव ने उन तीरों की शक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक तीर ब्रह्मा जी पर ही छोड़ दिया।
ऐसे में ब्रह्मा जी एक अलग सी रूमानियत महसूस करने लगे। उन्होंने अपना अकेलापन दूर करने के लिए अपनी संकल्प शक्ति से सतरूपा देवी का सृजन किया। ब्रह्मा जी अपने द्वारा उत्पन्न सतरूपा के प्रति आकृष्ट हो गए तथा उन्हें टकटकी बांध कर निहारने लगे।
सतरूपा ने ब्रह्मा की दृष्टि से बचने की हर कोशिश की किंतु असफल रहीं। ऐसे में सतरूपा ऊपर की ओर देखने लगीं तो ब्रह्मा जी अपना एक सिर ऊपर की विकसित कर दिया जिससे सतरूपा की हर कोशिश नाकाम हो गई।
भगवान शिव ब्रह्मा जी की इस हरकत को देख रहे थे। शिव की दृष्टि में सतरूपा ब्रह्मा की पुत्री सदृश थीं इसीलिए उन्हें यह घोर पाप लगा। इससे क्रुद्ध होकर शिव जी ब्रह्मा का सिर अपने काट डाला ताकि सतरूपा को ब्रह्मा जी की कुदृष्टि से बचाया जा सके।
भगवान शिव ने इसके अतिरिक्त भी ब्रह्मा जी को श्राप के रूप में दंड दिया। इस श्राप के अनुसार त्रिदेवों में शामिल ब्रह्मा जी की पूजा-उपासना नहीं होगी। इसीलिए आप देखते हैं कि आज भी शिव एवं विष्णु पूजा का व्यापक चलन है जबकि ब्रह्मा जी को उपेक्षित रखा जाता है।
इसी से जुड़ा एक प्रसंग और है, जिसके अनुसार ब्रह्मा जी अपने उस पाप से मुक्ति के लिए वेदों की व्याख्या करते हैं। शिव पुराण के अनुसार ब्रह्मा और सतरूपा के संयोग से ही स्वयंभू मनु का जन्म हुआ और इन्हीं मनु से मानव की उत्पत्ति हुई।
कुछ लोग यह प्रश्न करते हैं कि वेदों के जनक ब्रह्मा आखिर कैसे अपनी पुत्री सतरूपा के प्रति ही आसक्त हो गए? इसका जवाब ब्रह्मा द्वारा कामदेव को दिए गए तीन तीरों के वरदान से मिलता है।
कामदेव द्वारा ब्रह्मा जी पर ही तीर का प्रयोग कर देने से उनकी विवेक शक्ति क्षीण हो गई और वे सत-असत का भेद कर पाने में अक्षम हो गए।
भगवान शिव द्वारा काटा गया पांचवां सिर बद्रीनाथ परिक्षेत्र में गिरा। यह स्थान आज ब्रह्म कपाल के रूप में विख्यात है। यहां पर लोग अपने पितरों का तर्पण एवं पिण्डदान करके उन्हें मोक्ष प्राप्त होने की कामना करते हैं।