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जानिए भगवान गणेश के बारे में कुछ रोचक और अनोखी बातें। भगवान गणपति प्रथम पूज्य और संकटहर्ता माने जाते हैं। हर शुभ कार्य से पूर्व गणेशजी की वंदना इसलिए की जाती है ताकि वह मंगलमय हो और आनंदपूर्वक संपन्न हो। गणेशजी के बारे में अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं।

इनमें उनके बारे में विभिन्न रोचक बातें भी हैं जिनके संबंध में लोगों को प्रायः अधिक जानकारी नहीं होती। आप भी जानिए भगवान गणेश के बारे में ऐसी ही कुछ रोचक और अनोखी बातें।

1- क्या आप जानते हैं, गणेशजी के शरीर का रंग कैसा है? शिवपुराण के अनुसार गणेशजी के शरीर का वर्ण लाल तथा हरा है। लाल रंग शक्ति का और हरा रंग समृद्धि का प्रतीक है। इसका मतलब है, जहां गणेशजी हैं वहां शक्ति और समृद्धि, दोनों का वास है।

2- माता पार्वती ने पुत्र की प्राप्ति के लिए पुण्यक नामक उपवास किया था। कहा जाता है जब गणेशजी को समस्त देवता आशीर्वाद दे रहे थे तब शनिदेव अपना सिर झुकाए खड़े थे। तब मां पार्वती ने शनि से इसका रहस्य पूछा तो उन्होंने बताया कि उनकी दृष्टि गणेशजी के लिए शुभ नहीं होगी।

परंतु मां पार्वती के कहने पर उन्होंने गणेशजी को देखा और उनका अहित हुआ। कुछ दिनों बाद शिवजी ने उनका सिर काट दिया था।

3- गणेशजी के दो विवाह हुए हैं। उनकी पत्नियों के नाम सिद्धि और बुद्धि हैं। गणेशजी के दो पुत्र भी हैं। उनके नाम क्षेत्र तथा लाभ हैं।

4- गणपति भगवान शिव के पुत्र हैं लेकिन शिव ने भी उनकी पूजा की थी। एक बार शिवजी त्रिपुर नामक राक्षस का वध करने जा रहे थे। उन्होंने विजय प्राप्ति के लिए गणेशजी का पूजन किया, तब उन्हें युद्ध में विजय की प्राप्ति हुई।

5- मां पार्वती ने गणेशजी की रचना की थी लेकिन इसका सुझाव उन्हें उनकी दो सखियों जया और विजया ने दिया था। उन्होंने मां पार्वती को सलाह दी कि वे भी शिवजी की तरह एक ऐसे गण का निर्माण करें जो उनका आज्ञाकारी हो। तब पार्वती ने गणेशजी की रचना की।

6- गणेशजी को एकदंत भी कहा जाता है। इसके पीछे भी एक रोचक कथा है। माना जाता है कि एक बार परशुरामजी कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के दर्शन करने गए। उस समय शिवजी ध्यान कर रहे थे इसलिए गणेशजी ने परशुरामजी को अंदर नहीं जाने दिया।

इस बात से क्रोधित परशुराम ने अपने फरसे का वार गणेशजी पर कर दिया। चूंकि वह फरसा शिवजी ने ही परशुराम को दिया था, इसलिए गणेशजी चाहते थे कि उसका वार खाली न जाए और उन्होंने वह वार अपने दांत पर झेल लिया।

7- गणेशजी महान लेखक भी हैं। उन्होंने महाभारत का लेखन किया था। इस ग्रंथ के रचयिता तो वेदव्यास हैं लेकिन लिखने का दायित्व गणेशजी ने वहन किया। लेखन के लिए गणेशजी की शर्त थी कि उनकी लेखनी बीच में नहीं रुकनी चाहिए।

इसके लिए वेदव्यास ने उनसे कहा कि वे हर श्लोक को समझने के बाद ही लिखें। श्लोक का अर्थ समझने में गणेशजी को कुछ समय लगता था और उसी दौरान वेदव्यासजी आवश्यक कार्य पूर्ण कर लेते थे।