भगवान शिव को कई नाम से पुकारा जाता है और शिव जी के कई अनेक रूप भी हैं। शिव जी को भोलेनाथ, शिवशंकर, महादेव, के अलावा पशुपतिनाथ भी कहा जाता है। भगवान शिव ने कभी किसी पशु को नहीं पाला, लेकिन फिर भी इन्हें इस नाम से पुकारा जाता है। क्या आप जानते हैं क्यों भगवान शिव को पशुपतिनाथ कहा जाता है, यदि नहीं तो आइए आपको बताते हैं क्यों देवों के देव महादेव को पशुपतिनाथ कहा जाता है।
शिव पशुपत थे। इसके बाद उन्होंने इससे आगे बढऩे की कोशिश की और फिर वह पशुपति बन गए। वह जानवरों की प्रकृति के स्वामी बन गए। वह जानवरों की स्वाभाविक बाध्यताओं से मुक्त हो गए। अगर आप एक चींटी को ले लें तो यह बस एक चींटी है, इसके अंदर बस चींटी के ही गुण हैं। अगर आप सांप को लें तो वह बस एक सांप है। इसी तरह एक कुत्ता सिर्फ कुत्ता है, हाथी सिर्फ हाथी है। लेकिन आपमें इन सबके गुण हैं। आप अपने पास बैठे किसी व्यक्ति को चींटी की तरह काट सकते हैं और अगर आपको तेज गुस्सा आ गया तो आप कुत्ते की तरह भी हो सकते हैं। अगर जहर की बात करें तो आप किसी भी सांप को पीछे छोड़ सकते हैं। आप ये सब बनने में सक्षम हैं। उनमें केवल एक जानवर का गुण है, आपमें उन सबका है। दरअसल आपके सिस्टम में कहीं न कहीं इन सबकी यादें मौजूद होती हैं। अगर आप सचेतन नहीं हैं तो बड़ी ही आसानी से इन चीजों में फंस जाएंगे। आप पशुपत बन जाएंगे।
शिव जी को जीवन के सभी क्षेत्रों में बहुत संयमी कहा जाता है। भगवान शिव का वज्र सबसे शक्तिशाली होता है। वज्र को शिव निरीह पशु-पक्षियों को बचाने के लिए तथा मानवता विरोधी व्यक्तियों के विरुद्ध व्यवहार में लाते थे। शिव जी बहुत ही शांत प्रवृत्ति के कहे जाते हैं इसलिए वे अपने अस्त्र का उपयोग बहुत कम ही करते थे। उन्होंने अच्छे लोगों के विरुद्ध अस्त्र का व्यवहार कभी नहीं किया। जब भी मनुष्य और जीव-जंतु अपना दुख लेकर शिव के पास आए, शिव ने उन्हें आश्रय दिया और सत् पथ पर चलने का परामर्श दिया। लेकिन जिन्होंने शिव पर क्रोध कर अपने स्वार्थ को पूरा करने का विचार किया शिव जी ने उन्हीं पर अपने अस्त्र चलाए। भगवान शिव का यह अस्त्र मात्र ही कल्याणार्थ है, इसी कारण इसे ‘शुभ वज्र’ कहा गया है। मनुष्य के समान पशुओं के प्रति भी शिव के हृदय में अगाध वात्सल्य था। इस कारण उन्हें ‘पशुपति’ नाम मिला। इसलिए उन्हें पशुपतिनाथ भी कहा जाता है।