shashikant pandey's Album: Wall Photos

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कोई भी नर या नारी विंध्यवासिनी स्त्रोत और चालीसा का पाठ रोज 11 बार कीजिए। हर तरह की संकट, विपत्ति,, कर्ज मुक्ति, इत्यादि की एक ही दवा है नित्य पाठ करना। इसका परिणाम आपके सामने रहेगा।लगभग 41दिन में परिवर्तन दिखेगा,
अगर आपको विश्वास है तो जितनी जिन्दगी बची है दोनों को नियत समय पर पाठ कीजिये बाकी ग्रह गोचर भूल जाइए।इसलिये की वह चक्के की तरह है।रोज घूमता है, रोज किसी न किसी को प्रभवित करता है।
ग्रह गोचर को नजरअंदाज कीजिये आगे देखिए कि हमे कितनी उचाई पर जाना है। नीचे मत देखिये नही तो डर लगेगा डर लगेगा तो नीच ग्रह गोचर परेशान करेगा।
सिर्फ अपना मकसद पर ध्यान दीजिए।
हमारी बात अगर समझ मे आ गई तो ठीक नही तो राहु की महादशा समझ कर भूल जाये।

दोनों पाठ नीचे है:-

श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा

मां दुर्गा के नवरुप श्री दुर्गा चालीसा श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र

श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा
नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदम्ब ।

सन्त जनों के काज हित, करतीं नहीं विलम्ब ॥

जय जय जय विन्ध्याचल रानी ।

आदिशक्ति जग विदित भवानी ॥

सिंहवाहिनी जय जग माता ।

जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता ॥

कष्ट निवारिनि जय जग देवी ।

जय जय जय असुरासुर सेवी ॥

महिमा अमित अपार तुम्हारी ।

शेष सहस-मुख बरनत हारी ॥

दीनन के दुःख हरत भवानी ।

नहिं देख्यो तुमसम कौउ दानी ॥

सबकर मनसा पुरवत माता ।

महिमा अमित जगत विख्याता ॥

जो जन ध्यान तुम्हारी लावै ।

सो तुरतहिं वांछित फल पावै ॥

तुम्हीं वैष्णवी औ’ रुद्रानी ।

तुमही शारद औ’ ब्रह्मानी ॥

रमा राधिका श्यामा काली ।

मातु सदा सन्तन प्रतिपाली ॥

उमा माधवी चण्डी ज्वाला ।

बेगि मोहि पर होहु दयाला ॥

तुमही हिंगलाज महरानी ।

तुम्हीं शीतला अरु बिज्ञानी ॥

तुमहीं लक्ष्मी जग सुखदाता ।

दुर्गा दुर्ग बिनाशिनि माता ॥

तुम जाह्नवी और उन्नानी ।

हेमावति अम्बे निर्बानी ॥

अष्टभुजी वाराहिनि देवी ।

ब्रह्मा विष्णु सदा शिव सेवी ॥

चौंसट्ठी देवी कल्यानी ।

गौरि मंगला सब गुन खानी ॥

पाटन मुम्बा दन्त कुमारी ।

भद्रकालि सुन विनय हमारी ॥

बज्रधारिणी शोक-नाशिनी ।

आयु रक्षिणी विन्ध्यवासिनी ॥

जया और विजया बैताली ।

मातु संकटी अरु बिकराली ॥

नाम अनन्त तुम्हार भवानी ।

बरनौं किमि मैं जन अज्ञानी ॥

जा पर कृपा मातु तव होई ।

तो वह करै चहै मन जोई ॥

कृपा करहु मो पर महरानी ।

सिद्ध करिअ अम्बे मम बानी ॥

जो नर धरे मातु कर ध्याना ।

ताकर सदा होय कल्याना ॥

विपति ताहि सपनेहु नहिं आवै ।

जो देवी को जाप करावै ॥

जो नर पर ऋण होय अपारा ।

सो नर पाठ करै सतबारा ॥

निश्वय ऋणमोचन होइ जाई ।

जो नर पाठ करै मन लाई ॥

अस्तुति जो नर पढ़े-पढ़ावै ।

या जग में सो बहु सुख पावै ॥

जाको व्याधि सतावै भाई ।

जाप करत सब दूरि पराई ॥

जो नर बन्दी-गृह महँ होई ।

बार हजार पाठ कर सोई ॥

निश्चय बन्धन ते छुटि जाई ।

सत्य वचन मम मानहु भाई ॥

जा पर जो कछु संकट होई ।

सादर देविहिं सुमिरै सोई ॥

पुत्र प्राप्ति इच्छा कर जोई ।

विधिवत देविहिं सुमिरै सोई ॥

पाँच वर्ष नित पाठ करावै ।

नौरातर महँ विप्र जिमावै ॥

निश्चय होंय प्रसन्न भवानी ।

पुत्र देहिं ताकहँ गुन खानी ॥

ध्वजा नारियल आनि चढ़ावै ।

विधि समेत पूजन करवावै ॥

नित प्रति पाठ करै मन लाई ।

प्रेम सहित नहिं आन उपाई ॥

यह श्री विन्ध्याचल चालीसा ।

रंक पढ़त होवे अवनीसा ॥

यह जनि अचरज मानहु भाई ।

मातु कृपा संभव होई जाई ॥

जय जय जय जगमातु भवानी ।

कृपा करहु मो पर जन जानी ॥

॥ इति श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा समाप्त ॥

श्री विंध्याचल (विंध्येश्वरी) स्त्रोत का पाठ

इस स्त्रोत का पाठ नित्य प्रति दिन पाठ करने पाठ में वर्णित सभी लाभ मिलते हैं,
माँ दुर्गा पाठ के किताब में भी लिखा मिलजायगा |
उपयोग करे और लाभ ले और माँ दुर्गा से प्रार्थना करे - - - स्त्रोत - - -

निशुम्भ-शुम्भ-गर्जनीं, प्रचण्ड-मुण्ड-खण्डिनीम् ।

वने रणे प्रकाशिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम् ॥

त्रिशुल-मुण्ड-धारिणीं धरा-विघात-हारिणीम् ।

गृहे-गृहे निवासिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम् ॥

दरिद्रदुःख-हारिणीं, सदा विभुतिकारिणीम् ।

वियोग-शोक-हारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम् ॥

लसत्सुलोल-लोचनं लतासनं वरप्रदम् ।

कपाल-शुल-धारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम् ॥

कराब्जदानदाधरां, शिवाशिवां प्रदायिनीम् ।
वरा-वराननां शुभां भजामि विन्ध्यवासिनीम् ॥

कपिन्द्र - जामिनी प्रदाम, त्रिधा स्वरूप-धारिणीम् ।

जले - थले निवासिनीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम् ॥

विशिष्ट-शिष्ट-कारिणीं, विशाल रूप-धारिणीम् ।

महोदरे विलासिनीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम् ॥

पुरन्दरादि-सेवितां पुरादिवंशखण्डिताम् ।

विशुद्ध-बुद्धिकारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम् ॥
हरि ओम तत्सत,

11 बार शुबह 11 बार शाम
अगर 7 बजे सुबह पाठ करेंगे तो रोज इसी समय पर करेंगे।
यानी नियत समय पर करना है।