ना बदली कभी सृष्टि है ना बदला कोई जमाना है
बदली है तो सोच हमारी तभी बदला जमाना दिखता है
चकाचौंध के चक्कर में धर्म विमुख तुम बैठे हो
मात पिता का तिरस्कार कर झूठे मद में जीते हो
छल कपट तृष्णा से खुद जोडा तुमने नाता है
फिर भी कहते सृष्टि बदली बदला हुआ जमाना है
नीति नियम को ताख पर रख कर करते हेराफेरी हो
काम बासना के वशीभूत हो सदाचार को त्यागे हो
करनी का जब फल पाते तो देते दोष जमाने को
दूध छोड़कर मदिरा पीकर पशु का मांस चबाते हो
बेशर्मी से फिर भी कहते बदला हुआ जमाना है
धर्म से भटके हो तुम सब बदला नही जमाना है
त्याग दो अपने कुविचार को नास्तिक सोच बदल डालो
न बदली कभी सृष्टि है न बदला कोई जमाना है।