वैदिक कर्म के प्रकार
श्रीमद्भागवत महापुराण, सप्तम स्कन्ध, अध्याय 15
वैदिक कर्म दो प्रकार के हैं। प्रवृत्तिपरक और निवृत्तिपरक ।
प्रवृत्तिपरक— जो वृत्तियों को उनके विषयों की ओर ले जाते हैं !
निवृत्तिपरक— जो वृत्तियों को विषयों की ओर से लौटाकर शान्त एवं आत्मसाक्षात्कार के योग्य बना देते हैं ।
प्रवृत्तिपरक कर्म से बार बार जन्म-मृत्यु की प्राप्ति होती है और निवृत्तिपरक कर्म (भक्तिमार्ग या ज्ञानमार्ग) से परमात्मा की प्राप्ति होती है । शयेन-यागादि हिंसामय कर्म, अग्निहोत्र, दर्श, पूर्णमास, चातुर्मास्य, पशुयाग, सोमयाग, वैश्वदेव, बलिहरण आदि आदि द्रव्यमय कर्म, ये सभी प्रवृत्तिपरक कर्म हैं, और सकामभाव से युक्त होने पर अशान्ति के ही कारण बनते हैं ।