shashikant pandey's Album: Wall Photos

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जय श्री राम
जब श्री हनुमान जी लंका से सीता माँ का पता लगा कर वापिस आये, तो सब वानर बहुत खुश हुए। सभी सुग्रीव सहित श्री राम जी के पास पहुंचे और उन्हें सीता जी का पता बताया और बताया कि कैसे हनुमान जी ने लंका जा कर माता का पता लगाया।

प्रभु राम जी ने हनुमान जी को गले से लगा लिया और बोले कि तुमने असम्भव काम किया है। हनुमान जी बोले, प्रभु ये सब तो आपका ही प्रताप है। मुझे आपने ही तो इस कार्य के लिये चुना नही तो आप किसी से भी करवा सकते थे। राम जी बोले, नही हनुमान, तुम अतुलित बलशाली हो। ये केवल तुम ही कर सकते थे। इस तरह दोनो का संवाद चलता रहा, पर कोई भी इस बात का श्रेय लेंने को तैयार नही।

अंत मे जामवन्त जी बोले, हनुमान जी, हम सब जानते है कि ये कारज आपने ही किया है। फिर आप राम जी को इसका श्रेय कैसे दे रहे है?

हनुमान जी बोले, प्रभु चाहते तो किसी को भी लंका जाने की जरूरत न पड़ती। ये तो सिर्फ मुझे मान देना चाहते थे। आप ही बताइए, जब मै लंका में माता सीता का पता लगाने के लिये भटक रहा था तो मन में विचार आया कि काश कोई यहाँ मुझे माता का पता बता दे। कुछ ही देर में मुझे विभीषण जी मिल गए, जिन्होंने मुझे माता का पता बताया। वो प्रभु की ही कृपा थी।

जब मैं अशोक वाटिका में पहुचा तो रावण भी अपनी सेविकाओं के साथ आ गया और माता को धमकाने लगा। उसकी बात न मानने पर रावण ने अपनी तलवार निकाल ली और माता सीता को मारने के लिए बढ़ा। मेरे मन मे विचार आया कि यदि मैने तुरन्त रावण को नही रोका तो अनर्थ हो जाएगा। परन्तु उसी समय मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया और उसे समझा कर शांत किया। ये भी प्रभु का ही प्रताप था।

तत्पश्चात, जब त्रिजटा ने बाकी राक्षसियों को बताया कि उसने सपने में एक वानर को लंका जलाते हुए देखा है तो मैं हैरान हो गया कि ये कैसे सम्भव है। मेरे मन मे तो ऐसी कोई बात ही नही थी और इतनी बड़ी लंका को मैं कैसे जलाऊंगा। पर प्रभु ने उसका भी उपाय पहले से सोच रखा था। रावण ने स्वयं मेरी पूछ में आग लगाने का आदेश दिया और रुई, तेल और घी भी स्वयं मंगवा कर दिया, जिसकी सहायता से मैं लंका को जला पाया।

अब आप ही कहिये जामवन्त जी, कि ये कारज मैंने किया या प्रभु ने।

सुन कर सब वानर सेना गदगद हो गई कि किस प्रकार हनुमान जी ने सारे कारज का श्रेय राम जी को दे कर उनकी दिव्य भक्ति का आशीर्वाद पाया।

धन्य है श्री हनुमान जी।

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।