shashikant pandey's Album: Wall Photos

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जय माँ

'कमल' कहत निज भाव को , अनुभव कछु नहीं ज्ञान।
बिनु सतगुरु नहीं बोध हो , ज्ञान स्वयं भगवान।।

काम क्रोध मद लोभ वश , भ्रमित मनुस जग आन।
तासो सत् नहिं दीखता , बिनु सत् नहिं कल्याण।।

सत्य एक परमात्मा , मिथ्या जग सत् ज्ञान।।
अतिशय सुमिरन कीजिये , तबहिं मिलें भगवान।

मन को अपने देखिए , सत अरु असत विचार।
असतकर्म गति नरक है , सत् माया के पार।।

और धर्म सब त्यागि के , लीजै एक अपनाय।
नाम रूप इक जिस हृदय , तिनकी रक्षक माय।।

भक्त सदा हि निशंक है , शंकामय नहीं भक्त।
निज हित गुरु हरि बदलते , सो हैं मायासक्त।।

अवसरवादी स्वार्थी , व्यक्ति भक्ति पाखण्ड।
देव अनेकन पूजते , भोगे करम फल दण्ड।

व्यभिचारी सम होत है , पूजत इष्ट अनेक।
जिनके हिय एक रम रहा , कोटिन में कोई एक।।

सब नहीं जानत तन्त्र को , मन सबके नहीं मन्त्र।
तन्त्र मन्त्र के बोध बिन , सिद्ध होय नहीं यन्त्र।।

तन्त्र मन्त्र मत जानिये , मत जानो कोई यन्त्र।
भक्ति भजन से कटत है , माया के षड़यंत्र।।

एक नाम रूप रखि हिये , एक गुरु की मान।
एक मे खोए एक जब , होय ब्रह्म का ज्ञान।।

एक रूप नहीं मानते , जाएँ अनेकों द्वार।
निश्चय दुर्गति जानिये , न होवहि उद्धार।

झूठे जग की चाह में , सन्त गुरु अपमान।
आयुहीन हो कष्टमय , कबहुँ न पावे मान।।

भोग नहीं सब रोज का , योग निरन्तर जान।
झूठ भोग संसार है , सत्य माइ पहचान।।

पारब्रह्म परमेश्वरी भगवती 'कमल' विराज।
निःसंशय जो मानते , उनके पूरण काज।।

जगदम्ब भवानी