संसार आपके बारे में क्या सोचता है इस पर ध्यान देना बस समय व्यर्थ गवाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।
महत्वपूर्ण बात ये की हम आत्मसमीक्षा करते रहे कि हमसे कोई असत कर्म न हो हम सत्य से विमुख न हो।
किसी की भी परवाह न करते हुये निरन्तर अपने मूल लक्ष्य ईश्वर की ओर बढ़ते रहिये क्योंकि ये संसार सिवाय दुख के आपको कुछ दे ही नहीं सकता। जो स्वयं सत्य को समझता होगा वो एक दिन निश्चय ही सत्य का एहसास कर लेगा। किसी को स्वयं को प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं है। राहगीर बहुत मिलेंगे लेकिन सत्य के पथ का हमसफ़र करोड़ो में कोई होता है।