कोई ये कैसे बताये के वो तनहा क्यों है..
वो जो अपना था, वही और किसी का क्यों है..
यही दुनिया हैं तो फिर, ऐसी ये दुनिया क्यों है.
यही होता हैं तो, आखिर यही होता क्यों है?
इक ज़रा हाथ बढ़ा दे तो, पकड़ ले दामन
उस के सीने में समा जाए, हमारी धड़कन
इतनी कुर्बत हैं तो फिर फासला इतना क्यों है?
दिल-ए-बरबाद से निकला नहीं अबतक कोई
इक लुटे घर पे दिया करता हैं दस्तक कोई
आस जो टूट गयी हैं फिर से बंधाता क्यों है?
तुम मसर्रत का कहो या इसे गम का रिश्ता
कहते हैं प्यार का रिश्ता हैं जनम का रिश्ता
है जनम का जो ये रिश्ता तो बदलता क्यों है?