मायका पर अनेकों कविताएं लिखी गयी हैं पर ससुराल को कोई याद नही करता।
*सुन ससुराल*
*अच्छा लगता हैं तेरा साथ*
*अब तक जो किया सफर*
*थामकर तेरा हाथ*
*पहला पाँव जब धरा था*
*तेरे नाम से ही मन डरा था*
*बिन आवाज़ थालियों को उठाया था*
*साड़ी में एक एक कदम डगमगाया था*
*रस्मों रिवाजों को तहेदिल से निभाया था*
*खनकती चूड़ियों से कड़छी को चलाया था*
*डरते डरते पहली बार खाना बनाया था*
*बस ऐसे ही मैंने*
*सबको अपना बनाया था*
*सुन ससुराल*-------
*तुम साक्षी हो मेरे एक एक पल के*
*वो पहली बार*
*अपने अंदर जीवन महसूस करना*
*कपड़े सुखाने आँगन में डोलना**
*पापड़ का कच्चा कच्चा सा सेंकना*
*गोल रोटी के लिये जद्दोजहद करना*
*दाल का तड़का, दूध का उफनना*
*कटी हुई भिंडी को धोना*
पहली बार हलवे का बनाना
पहली दिवाली पर दुल्हन सी सजना
तीज व करवा चौथ पर मनुहार* *करवाना
हाँ ससुराल ने दिये ये अनमोल पल
वधु बन आयी थी
तुम्हीं थे जिसने सर आँखों बैठाया
बड़े स्नेह से अपनापन जताया
यही आकर मैंने सब सीखा और जाना
कभी किसे मनाया तो कभी किसे सताया
एक ही समय में
मैंने कितने किरदारों को निभाया
खुद को खो खोकर मैंने खुद को पाया
सुन ससुराल---------
मायके के आगे भले ही
हमेशा उपेक्षित रहे तुम
लेकिन
फिर भी मेरे अपने रहे तुम
मायके में भी मेरा सम्मान रहे तुम
मेरे बच्चों की गुंजे जहाँ किलकारियाँ
वो आँगन रहे तुम
मेरे हर सुख दुख के साक्षी रहे तुम
सुन ससुराल--------
पीहर की गलियाँ याद आती हैं
गीत बचपन के गुनगुनाती हैं
लेकिन
मायके में भी तेरी बात सुहाती हैं
तेरा तो ना कोई सानी हैं
तू ही तो मेरे उतार चढ़ाव की कहानी हैं
कितने सबक़ तुने सिखाये
पाठशाला ये कितनी पुरानी हैं
सुन ससुराल--------
अब तू ससुराल नहीं मेरा घर हैं ।