कई सन्तों ने भविष्य के बारे में बताया है
दो सन्तों का यहाँ वर्णन है
सूरदास की भविष्यवाणी
संवत दो हजार के ऊपर छप्पन वर्ष चढ़े मलेच्छ राज्य की सगरी सेना, आपही आप मरे ।
सूर सबहि अनहोनी होइहै, जग में अकाल परे ।
हिंदू मुगल तुरक सब नाशै, कीट पतंग जरे ।
अकाल मृत्यु जगमाहीं ब्यापै, परजा बहुत मरे ।
दुष्ट दुष्ट को ऐसा काटे, जैसे कीट जरे ।
उड़ि विमान अम्बर में जावे, गृह गृह युद्ध करे ।
मारूत विष फैंके जग माहिं, परजा बहुत मरे ।
द्वादस कोस शिखा हो जाकी, कंठ सूं तेज भरे पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, चहुं दिस काल फिरे ।
अकाल मृत्यु जग माहिं व्यापै, परजा बहुत मरे ।
काल ब्याल से वही बचे, जो गुरू का ध्यान धरे ।
सूरदास हरि की यह लीला, टारे नाहिं टरे ।
सहस्र वर्ष लगि सतयुग व्यापै, सुख की दशा फिरे
स्वर्णफूल बन पृथ्वी फूले, धर्म की बेल बढ़े ।