नमन ! वंदन ! उन सभी को जिन्होंने जीवन में किसी न किसी रूप में कोई न कोई ज्ञान प्रदान किया ! श्रद्धा से जिन चरणों को स्पर्श करने का सौभाग्य मिला और जिन गुरुओं ने अपने ज्ञान से हमें गढ़ा , उस ऋण को ताउम्र चुका तो नहीं सकते फिर भी आज के दिन उन्हें नमन कर उनके दिखाए मार्ग पर चल कर मानवता के नए मानदंड स्थापित करने में उक्त संस्मरण सदैव मार्गदर्शक रहेंगे।
"ज्ञान पुस्तक या प्रमाणपत्र में नहीं चरित्र में होना चाहिये।"
" बड़ा तो समय सबको बनाता है , तुम्हें आदमी(इंसानियत भरा) बनना चाहिए ।"
"गुरु वो जिसमें ज्ञान का गुरुर न हो , शिष्य वही जिसे गुरु की ज्ञान पर संशय न हो ।"
"जिसे गुरु मिले वो ज्ञान भी पाएंगे और चरित्र भी !"
"समझदार होते है वो जिसे पता है क्या बोलना चाहिए परन्तु वो ज्ञानी है जिसे पता होता है कब , क्या , कहाँ और क्यों बोलना है !"
"सर्वश्रेष्ठ नहीं सर्वोत्तम होना ही लक्ष्य है !"
"जिंदगी में पतित होने के कई लेकिन पवित्र होने का अवसर सिर्फ़ एक बार मिलता है ।"
अति किसी की हो हमेशा वर्जित हो जाता है चाहे वो सुख, सम्पदा, संपन्नता, शिक्षा या संस्कार जो भी हो !"
बातें बहुत है, यादें उससे भी अधिक ।
"गुरु" एक शब्द जो जब भी कानों में उतरता है तो हम अपने आप किसी दैवीय अनुभूति से प्रेरित हो श्रद्धा और आदर से भर जाते है । व्यक्ति जिसे गुरु माने या गुरु मानते न हो केवल दिखावे के लिए भी जो कहे तो आदर और प्रेम ही प्रदर्शित करता है।