भगवान परशुराम जयंती पर विशेष।
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एक समय की बात है। पश्चिमी हिमालय में यमुना के किनारे ऋषि जमदग्नि का आश्रम हुआ करता था जहाँ वह सपत्नीक रहते और तपस्या करते थे। क्योंकि जमदग्नि महान ऋषि थे इसलिए उन्हे पूजा पाठ के लिए रोज गंगाजल चाहिए होता था। जिसके लिए ऋषि-पत्नी रेणुका हर रोज कई मील चलकर राड़ी डांडे के दूसरी तरफ भागीरथी से ताज़ा गंगा जल लेकर आती थी।
एक दिन ऐसा हुआ कि जब ऋषि-पत्नी रेणुका भागीरथी के तट पर जल लेने पहुँची तो उसकी नजर मर्तिकावर्त देश के राजा चित्ररथ पर पडी जो अपनी पत्नी संग भागीरथी के भीतर जल क्रिडा मे रमा था। उस प्रणयी युगल को देख कर रेणुका भाव विभोर हो गयी। यह जानते हुए भी कि ऋषि की पूजा अर्चना का समय हो रहा है, वह उन पर से नजर नही हटा पा रही थी।
खैर, गंगाजल लेकर जब रेणुका आश्रम पहुँची तो पर्याप्त विलंब हो चुका था। क्रोधित ऋषि ने देरी का कारण पूछा तो रेणुका ने निर्भय होकर सही सही बात बता दी। सही बात सुनकर ऋषि आग बबूला हो गये। उन्होने तय किया कि जिस देह ने कामातुर गंधर्वों की जल क्रिडा देखी हो वो देह अब उनके साथ नही रह सकती। ऋषि ने तत्काल अपने ज्येष्ठ पुत्र रुमण्वान को बुलाया और आज्ञा दी कि अपनी माँ का गला काट दो। उससे आदेश का अनुपालन नही हो पाया। तब एक एक कर सुषेण वसु और विश्ववसु नामक पुत्रों को बुलाया और उनको भी वही आदेश दिया कि अपनी माँ का सर कलम कर दो। अपनी जन्म दात्री का गला कौन काट सकता है। वे यह सुनकर बेहोश हो गये।
अंत में उन्होने कनिष्ठ पुत्र परशुराम को बुलाकर कहा - अपनी माँ का गला काट दे।
आदेश के पिता के मुख से निकलने की देरी थी। विष्णु के छटे अवतार परशुराम ने उस पर दुबारा सोचने की जरूरत नही समझी, उसने फ़रसा उठाया और माँ की गर्दन धड़ से अलग कर दी। जब रेणुका का सर विहीन धड़ जमीन पर छटपटाने लगा तब जाकर महान ऋषि जमदग्नि का अहम् संतुष्ट हुआ।
महिलाओं पर होने वाले अन्याय और अत्याचार का विरोध जताने वालो, आज देवताओं के पूज्य, ब्राह्मण श्रेष्ठ विष्णु अवतार परशुराम की भी जयंती है। आप मना रहे हो न?