आपको उस दीपिका का पूरा नाम याद है जिसने आर्चरी यानी तीरंदाजी में रातोंरात पहचान बनाई थी। झारखंड से थी न वो? कहाँ है आजकल?
डिंको सिंह याद हैं? एशियाड में गोल्ड जीता था। तब जीता था जब मेडल के लाले पड़ रहे थे। शायद मणिपुर से था। कहाँ है आजकल? कैंसर हुआ था..लड़ रहा है।
ज्योतिर्मोई सिकदर याद हैं? एक नहीं दो दो गोल्ड जीते थे एक ही एशियाई गेम्स में। 800 मी और 1500 मी दौड़ में गोल्ड। किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि भारत ने ट्रैक एंड फील्ड में दो दो गोल्ड जीते हैं दो दिन के अंदर।
के एम बीनामोल याद हैं? अंजू बॉबी जॉर्ज याद हैं? शायद नहीं। क्योंकि इनके ऊपर फ़िल्म नहीं बनी। बीनामोल पीटी उषा के बाद ओलंपिक सेमी फाइनल्स तक पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला थी शायद। अंजू बॉबी जॉर्ज ने लंबी कूद में भारत का खाता खोला और याद दिलाया कि भारतीय भी लंबी कूद में भाग लेते हैं। दोनों कहाँ है आजकल?
कर्णम मलेश्वरी ने सिडनी ओलंपिक में भारत की लाज बचाई थी। पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला भारत्तोलक बनी थी। कहाँ है आजकल?
एक थी लेशराम बोम्बायला देवी। तीरंदाज थीं। दीपिका की तरह वो भी गुमनाम हो गयी। कहाँ है आजकल?
ये सारे वो नाम हैं जिनकी तस्वीरें हम सोशल मीडिया पर ज़रूर शेयर करते अगर उस वक़्त सोशल मीडिया होता तो। इन सबने किसी क्रिकेटर या पॉलिटिशियन से अधिक मौकों पर राष्ट्रगान को सम्मान दिया है। उसी सम्मान के लिए खुद को झोंक दिया। बदले में गुमनामी के सिवा हमने क्या दिया?
एक विजेंदर सिंह थे। एक आध टूर्नामेंट जीते लेकिन लाइम लाइट में रहे। एक अजय जडेजा थे। फिक्सिंग के बाद भी इज़्ज़त से जी रहे हैं। एक अज़हरुद्दीन साहब थे। फिक्सिंग के बावजूद संसद तक गए। शायद इसलिए कि ये सभी भारत के उस हिस्से से आते हैं जो मीडिया के बाजार रूप में स्थापित है। ऊपर गिनाए सभी नाम हाशिये पर पड़ी जनता के बीच से आते हैं। साधारणतम परिवारों से आते हैं।
सोशल मीडिया पर इन जैसों की उपलब्धियां ज़रूर शेयर करिए। कम से कम हम तो इन्हें इनके हिस्से की तारीफ़ और पहचान मुहैया करवा पाएं। लेकिन सिर्फ़ इतना याद रहे कि इन्हें भूलना नहीं है। इन्होंने किसी क्रिकेटर के विपरीत भारत का आधिकारिक प्रतिनिधित्व किया था।