नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का आदेश-
"गंगाजल पीने-नहाने लायक नही,बोर्ड लगाकर बताएं"...
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बहुत ही शर्मनाक है नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की टिप्पड़ी कि"गंगाजल पीने-नहाने लायक नही है,बोर्ड लगाकर बताएं।सिगरेट की तरह दी जाय वैधानिक चेतावनी"
जस्टिश एके गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने सरकार को कहा है कि प्रत्येक 100 किलोमीटर पर डिस्प्ले बोर्ड लगाया जाय तथा बेबसाइट पर क्षेत्रवार सूचना प्रसारित की जाय कि वहां गंगा की क्या स्थिति है?
गंगा जल पर की गई टिप्पड़ी पर अब कई सवाल उठने लाजमी हैं क्योंकि मोदी जी के मुताबिक पिछली सरकार को कथित तौर पर गंगा से कोई मतलब नही था जबकि इस गंगा समर्थक सरकार का तीन साल का नमामि गंगे परियोजना का बजट 5378 करोड़ था जिसमे से 3633 करोड़ निकाला गया और 1836 करोड़ 40 लाख रुपये खर्च किया गया।नमामि गंगे परियोजना के बजट का एक तिहाई हिस्सा ही खर्च कर पाने वाली गंगा समर्थक सरकार इस पैसे का क्या प्रयोग की होगी यह कोर्ट की सख्त टिप्पड़ी से हम सहज ही समझ सकते हैं।
सरकार ने एक आरटीआई में बताया है कि गंगा सफाई के लिए वह तीन साल हेतु 12000 करोड़ रुपये बजट निर्धारित की थी लेकिन 5378 करोड़ रुपये का ही आबंटन हो सका और 3633 करोड़ रुपये ड्रा कर खर्च 1836.40 करोड़ ही किया गया।सरकार द्वारा 5 साल में 20 हजार करोड़ रुपये इस निमित्त खर्च करने का प्लान था लेकिन हुवा क्या?तीन साल में केवल खर्च हुआ 1836.40 करोड़ रुपये।
अब बहुत स्पष्ट है कि जब कोई परियोजना बनती है और उसकी लागत निर्धारित हो जाती है तो उसे पूर्ण करने के लिए निर्धारित समय मे निर्धारित बजट खर्च करना होता है अन्यथा आधा-अधूरा बजट व आधा अधूरा काम उस परियोजना की लागत भी बढ़ा देता है और हुवा काम बेमतलब भी हो जाता है।
आखिर गंगा की सफाई को प्राथमिकता पर रखने वाली सरकार ने गंगा के साथ ऐसा क्रूर मजाक क्यो किया कि अब जब इस सरकार के 5 साल पूरे होने वाले हैं तो कोर्ट प्रत्येक 100 किलोमीटर पर गंगाजल की स्थिति लिख कर डिस्प्ले बोर्ड लगाने व बेबसाइट पर उसे डालने की बात कहते हुए गंगाजल को पीने व नहाने के अयोग्य बता रहा है।आखिर विगत तीन साल में 1836.40 करोड़ रुपये से क्या किया गया है कि गंगा और मैली हो गयी?
प्रधानमंत्री मोदी जी ने वाराणसी से चुनाव लड़ते वक्त गंगा को प्रणाम करते हुए कहा था कि मैं बनारस वैसे ही नही आया हूँ,मुझे मां गंगा ने बुलाया है।मेरी प्राथमिकता मां गंगा की सफाई है।मंत्री व साध्वी उमा भारती जी ने तो अति उत्साह में यहां तक कह दिया था कि यदि गंगा स्वच्छ न हुई तो वे आत्मदाह कर लेंगी।मैं उनके ऐसा कहने को उचित नही मानता क्योकि हम किसी काम को करने का प्रयत्न भर कर सकते हैं उसके होने की स्योरिटी संदिग्ध हो सकती है इसलिए किसी काम को अपनी जान से बांध कर शर्तिया बोलना बड़बोलापन ही कहा जायेगा लेकिन सवाल तो अब उठेंगे क्योकि मां गंगा ने बुलाया और आप दौड़े चले आये और 3 साल में 1836.40 करोड़ खर्च कर गंगा को इस लायक बना दिये कि वह आचमन लायक भी न रही?
कितना अजीब है कि जब सिकन्दर भारत आने लगा तो कहा जाता है कि उसकी माँ ने गंगा जल मांगा था।लोग यह मानते थे गंगा का पानी सड़ता नही है और उसमें कीटाणु नही पनपते।यह अलग बात है कि उसका कारण वैज्ञानिक था लेकिन धंधेबाज लोगो ने उसे धर्म से जोड़ दिया।गंगा पर फ़िल्में बनी और "गंगा तेरा पानी अमृत जैसा" से लेकर एक से एक कालजयी गीते लिखी गयी और आज "गो-गंगा-गायत्री" को अपना आदर्श मानने वाली सरकार में गंगा का यह हाल?
समाजवादी चिंतक डॉ राममनोहर लोहिया जी ने भारत की जल नीति व भारतीय सन्दर्भ में नदियों की सफाई पर 1960 के दशक में ही अपनी दूरदर्शी नीति का खुलासा कर दिया था।लोहिया जी ने कहा था कि नदियों को गहरा किया जाय,निकली हुई मिट्टी से बंधे बना उन्हें सड़क का रूप दिया जाय।नदियों को इंटरकनेक्ट किया जाय तथा इनमे गन्दे पानी का बहना रोका जाय।लोहिया जी केवल एक गंगा को साफ करने की नही बल्कि पूरे देश की नदियों को उन क्षेत्र विशेष के लिए कीमती मानते हुये उन्हें स्वच्छ रखने की हिमायत करते थे।
जल ही जीवन है।यह जल हम इंसानो,पशुओं, खेतो,कल-कारखानों आदि सभी को चाहिए इसलिए सारे जल स्रोत स्वच्छ होने चाहिए।लोहिया जी के विचार आज भी प्रासंगिक है क्योंकि नदियों के गहरा करने से थोड़ी सी बारिस में जल प्लावन व बाढ़ की विभीषिका से मुक्ति मिल जाएगी।नदियों के इंटरकनेक्ट करने से कावेरी जल विवाद जैसे मसले नही पनपेंगे।नदियों को गहरा कर उनका मिट्टी तटबन्ध बनाकर सड़क बना देने से अतिरिक्त भूमि सड़क हेतु अधिग्रहित करने से बचा जा सकेगा लेकिन सरकारों का ध्यान तो कुछ और में ही रहता है।इसलिए वे ऐसा क्यों करें?
कोर्ट की गंगा पर टिप्पड़ी समझदार लोगो के लिए बहुत कुछ कह गयी है।वर्तमान सरकार अब गंगा सफाई और अपनी नमामि गंगे योजना पर कौन सी दलील देगी यह देखना है?