जो सबकी सुनता है। आज उसकी सुनवाई चल रही है मामला है *राम मंदिर* का
इससे साबित होता है कि राम को भी संविधान से ही न्याय मिल सकता है. आखिरकार राम को भी संविधान की शरण लेनी पड़ी. अब हमे सोचना है कि राम बड़ा है या अम्बेडकर. राम को भी अपने दरबार में न्याय नहीं मिला तो बाबा साहेब के दरबार में न्याय की गुहार लगानी पड़ी. आज हमे बहुत बहुत ही गर्व की अनुभूति हो रही है कि हम बाबा साहेब के संतान है. बाबा साहेब जैसे पूर्वजों पर हमे अभिमान है. ये है हमारे बाबा साहेब की सोच की ताकत. जिसने राम जैसे भगवान को भी संविधान के चरणों में झुका दिया. धन्य हैं हमारे बाबा साहेब. और आज के चापलूस नेता उस राम के तलवे चाटने में गर्व महसूस करते हैं, जिसे बाबा साहेब के आगे धूल फांकने पर मजबूर कर दिया. ये लोग भूल गये कि जिसके बदौलत एम. पी., मंत्री वगैरह बने हुए हैं वो राम नहीं बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर है.