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आइये आपको बताते है कि आखिर रामायण क्या है।

रामायण पुष्यमित्र शुंग के राजकबि वाल्मीकि की कल्पना से लिखी गई एक मनगढंत कहानी है। जो पुष्यमित्र शुंग को भगवान का अवतार स्थापित करने के उद्देश्य से लिखी गई थी। जिसका उद्देश्य मूलनिवासी समाज के लोगों के मन में एक बार फिर देवातावाद या अवतारवाद का डर बैठाना था। ब्राह्मणों के विष्णु भगवान और ब्राह्मणवाद का अस्तित्व भारत में बौद्ध धर्म के उदय के बाद पूरी तरह समाप्त हो चूका था। लोगों ने विष्णु को भगवान और ब्राह्मणों के अवतारवाद को मानना बंद कर दिया था। गौतम बुद्ध ने जो क्रांति की मशाल जलाई थी उसके प्रकाश के आगे ब्राह्मणवाद हर प्रकार से मूलनिवासियों को दबाने में असफल हो चूका था। लोग काल्पनिक कहानियों को मानना छोड़ कर सच, समता, न्याय और बंधुत्व के मार्ग पर चलने लगे थे। उस समय वाल्मीकि नाम के एक ब्राह्मण ने फिर से ब्राह्मणवाद को स्थापित करने और मूलनिवासियों के मन में अवतारवाद का भय बिठाने के लिए रामायण जैसी ब्राह्मणवादी और काल्पनिक कहानी को लिखा। रामायण लेखन पुष्यमित्र शुंग की एक चाल थी जिससे मूलनिवासी धर्म के नाम से डरे और ब्राह्मणवादी सामाजिक प्रणाली वर्ण व्यवस्था को अपना ले। ब्राह्मण वाल्मीकि के रामायण लिखने का प्रभाव यह हुआ कि भारत के सभी लोगों ने पुष्यमित्र शुंग को राम समझ कर भगवान मानना शुरू कर दिया और बृहदत्त जो भारत के महान मूलनिवासी बौद्ध राजा अशोक का पोता था उसको रावण समझ कर समाज पर कलंक और बुरा समझना शुरू कर दिया। पुष्यमित्र शुंग के समय से ही ब्राह्मणों ने चतुराई पूर्ण ढंग से, धर्म के नाम पर पाखंड करके और आडम्बर को बढ़ावा देकर रामायण को हमेशा सच साबित करने की कोशिश जारी रखी, मूलनिवासी समाज के अनपढ़ और भोले भाले लोग ब्राह्मणों की चतुराई को समझ नहीं सके और आज भी किसी ना किसी तरह से रामायण को सच मानते है और रामायण जैसी काल्पनिक कहानी का सही तरीके से विरोध ना करके ब्राह्मणों के दिखाए रस्ते पर चल कर किसी ना किसी तरह से रामायण को सच साबित करने में लगे हुए है।

असल इतिहास के मुताबिक़ भारत में 1000 इसवी में भारत पर बौद्ध राजा बृहदत्त शासन था और पाटलिपुत्र बृहदत्त की राजधानी थी। उस समय पुरे भारत अर्थात पाकिस्तान, भारत, बंगलादेश, चीन, भूटान, नेपाल और श्रीलंका में बौद्ध धम्म अपने चरम पर था। मूलनिवासी राजा महाराज अशोक जो गौतम बुद्ध के अनुयायी थे ने गौतम बुद्ध की शिक्षाओं के अनुसार शासन करते हुए पुरे भारत को बौद्धमय बना दिया था। लोग जातिवाद और ब्राह्मणवाद के विरोधी हो गए थे। ब्राह्मणों द्वारा बनाई वर्ण व्यवस्था को भारत के निवासियों ने नकार दिया था। सभी भारतवासी समता, समानता, न्याय और बंधुत्व के आधार पर स्थापित बौद्ध धम्म को मानने लगे थे। ब्राह्मणों के बुरे दिन शुरू हो चुके थे भारत के निवासियों ने मंदिरों में जाना बंद कर दिया था। दान, कर्मकांडों और पूजा पाठ आदि की व्यवस्था भारत से लुप्त होती जा रही थी। जिसके कारण ब्राह्मणों के भूखे मरने और मेहनत करने के दिन आने लगे थे। अर्थात ब्राह्मणों के सभी प्रकार के मुफ्त में धन और सम्मान हासिल करने की प्रथा के बंद होने के कारण ब्राह्मणों को भी मेहनत करनी पड़ रही थी। भारत के निवासी ब्राह्मणों के धर्म गर्न्थों, प्रथाओं और परम्पराओं के विरोधी हो गए थे और ब्राह्मण धर्म पूरी तरह खतरे में पड़ गया था। उस समय ब्राह्मणों ने पुरे भारत से ब्राह्मणों को बुला कर एक सभा का आयोजन किया। सभा में मूलनिवासी महाराजा बृहदत्त को मारने और भारत में फिर से ब्राह्मण धर्म को स्थपित करने की साजिश रची गई। षड्यंत्र के मुताबिक़ मूलनिवासी बौद्ध राजा बृहदत्त को मारने का कार्य पुष्यमित्र शुंग नाम के एक सैनिक को सौंपा गया जोकि महाराज बृहदत्त की सेना में एक सिपाही था। पुष्यमित्र शुंग ने योजना के मुताबिक एक दिन बृहदत्त को भरे राज दरबार में तलवार से पेट पर वार करके मार डाला और पाटलिपुत्र पर कब्ज़ा करके खुद को देश का राजा घोषित कर दिया। पाटलिपुत्र का नाम बदलकर अयोध्या रख दिया गया। जिसके प्रमाण इतिहास में आसानी से मिल जाते है, इतिहास के मुताबिक़ पाटलिपुत्र वही पर था जिसको आज अयोध्या कहा जाता है। अयोध्या का शाब्दिक अर्थ भी “बिना युद्ध के जीती गई राजधानी” ही होता है। अयोध्या को जीतने के लिए पुष्यमित्र शुंग ने कोई युद्ध नहीं किया था बल्कि षड्यंत्र से हासिल किया था। बृहदत्त की मृत्यु के बाद पुष्यमित्र शुंग ने सम्पूर्ण भारत से बौद्ध धर्म को समाप्त करने की योजना बना कर बौद्ध भिक्षुओं पर तरह तरह के अत्याचार करने शुरू कर दिए। बौद्ध भिक्षुओं के घर, मठ और रहने के स्थान जला दिए गए, बौद्ध भिक्षुओं के द्वारा स्थापित विद्यालयों को भी आग के हवाले कर दिया गया जिससे बुध भिक्षुओ द्वारा लिखी गई लाखों किताबे आग में जल कर स्वाह हो गई। लाखों बौद्ध भिक्षुओं को मौत के घाट उतार दिया गया और देश में फिर से वर्ण व्यवस्था को स्थापित किया गया। जिन मूलनिवासी लोगों ने सीधे बिना किसी विरोध के ब्राह्मणों की गुलामी और वर्ण व्यवस्था को मानना शुरू कर दिया वो लोग आज के भारत में ओबीसी के नाम से जाने जाते है। कुछ लोगों ने पुष्यमित्र का विरोध किया और नगरों से भाग कर दूर जा बसे। उन लोगों में से कुछ लोग भूख, प्यास और बदहाली की जिंदगी से परेशान होकर पुष्यमित्र शुंग की शरण में जा पहुंचे। उन्होंने भी ब्राह्मण धर्म और वर्ण व्यवस्था को स्वीकार किया जिनको आज के भारत में एसटी के नाम से जाना जाता है। लेकिन जो मूलनिवासियों का समूह ब्राह्मण धर्म और वर्ण व्यवस्था के खिलाफ नगरों से दूर रहता था उस समूह ने पुष्यमित्र शुंग के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया। लेकिन ओबीसी और एसटी नाम के आधे मूलनिवासी पहले ही पुष्यमित्र शुंग के साथ होने से मूलनिवासियों के उन योद्धाओं के समूह को युद्ध में हार का सामना करना पड़ा। युद्ध में हारे हुए उन योद्धाओं को आज के भारत में एससी के नाम से जाना जाता है। उसके बाद पुष्यमित्र शुंग ने अपने राजकवि वाल्मीकि को एक ऐसी कहानी लिखने का आदेश दिया जिससे पुष्यमित्र शुंग सदा के लिए इतिहास में अमर हो जाये। मूलनिवासियों के मन में सदा के लिए ब्राह्मणवाद और अवतारवाद का डर बैठ जाये, भारत में हमेशा के लिए वर्ण व्यवस्था स्थापित हो जाये। पुष्यमित्र शुंग के आदेश पर वाल्मीकि ने रामायण नामक एक काल्पनिक कहानी की रचना की और पुष्यमित्र शुंग ने ब्राह्मणों को आदेश देकर इस काल्पनिक कहानी को भारत के कोने कोने में पहुंचा कर सच साबित करने में लगा दिया। ना तो कभी रावण हुआ, ना कभी राम हुआ और ना ही रामायण जैसी कोई घटना घटी लेकिन पुष्यमित्र शुंग के षड्यंत्र में फंसे लोग आज भी रामायण को सच मानते है।

रामायण 1000 इसवी के बाद लिखी गई इस के बहुत से प्रमाण मौजूद है। उदाहरण के लिए यहाँ एक प्रमाण दिया जा रहा है जो भाषा के विकास से सम्बंधित है। विज्ञान के मुताबिक किसी भी भाषा के लिपि तक के विकास में कम से कम 800 से 1000 सालों का समय लगता है और अगले 1000 सालों में वह भाषा समाप्त भी हो जाती है। अर्थात एक भाषा की उम्र 2000 साल होती है। यह भी सर्व मान्य है कि आज से 2000 साल पहले किसी भी भाषा की कोई लिपि नहीं थी और यह बात विज्ञान ने भी प्रमाणित की है। अर्थात संस्कृत की 800 इसवी तक कोई लिपि नहीं थी। जिस भाषा की कोई लिपि ही ना हो उस में किसी भी प्रकार के साहित्य की रचना असंभव है। 800 इसवी में संस्कृत भाषा की बुनियादी लिपि बनी और उसके विकास में भी कम से कम 200 से 300 सालों का समय लगा। तो रामायण की रचना भी 1000 इसवी के बाद ही की गई है।

यहाँ एक बात और जिसको यहाँ कहना बहुत जरुरी है अगर आप रामायण, महाभारत, गीता, वेद, पुराणों आदि काल्पनिक धर्म शास्त्रों में विश्वास करते है। उन पर बहस करते है तो आप भी एक ब्राह्मणवादी हो जो काल्पनिक कहानियों के चक्कर में फंस कर किसी ना किसी प्रकार से ब्राह्मणवाद को बढावा दे रहे हो। जय रावण बोलकर हमारे समाज का उद्दार नहीं हो सकता। क्योकि इसका सीधा अर्थ है आप वाल्मीकि की काल्पनिक कहानी को सच मानते हो। अगर रामायण को सच मानते हो तो आपको उसमें दी गई शिक्षाओं और वर्ण व्यवस्था को भी सच मानना पड़ेगा। और आप एक ब्राह्मणवादी साबित हो जाओगे। हमराप सभी को सची रामायण नाम की किताब को पढ़ना चाहिए जो हाई कोर्ट द्वारा प्रमाणित किताब है। जिस से आपको रामायण की असलियत समझने में आसानी होगी। रामायण असल में एक कथा है एक कहानी है जिसके नाम पर पाखंड और आडम्बर करके ब्राह्मणों ने मूलनिवासी लोगों को गुलाम बना रखा है।

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