सिंधु घाटी के लोग द्रविड़ थे और सिंधु घाटी की सभ्यता द्रविड़ों की बौद्ध सभ्यता थी। बौद्ध सभ्यता का विकास रातों - रात नहीं हुआ। कई नृवंशों, कई पीढ़ियों, कई गणों ने इसके विकास में अपना - अपना योगदान किया है।
गौतम बुद्ध से पहले जो 27 बुद्धों के नाम मिलते हैं, भाषाई दृष्टिकोण से वे नाम काफी दिलचस्प हैं।
एकदम से आरंभिक बुद्धों के नाम हमें द्रविड़ नामों की याद कराते हैं। शायद इसलिए कि इन बुद्धों की मौजूदगी सिंधु घाटी की द्रविड़ बौद्ध सभ्यता में रही होगी।
मिसाल के तौर पर, पहले बुद्ध का नाम तणहंकर बुद्ध है। तण द्रविड़ शब्द है, जो शीतलता का, तृप्ति का बोधक है। तणहंकर का तण न तो संस्कृत में है और न प्राकृत में है। आर्य भाषाओं में तण के अवशेष नहीं मिलते हैं। तणहंकर द्रविड़ नाम है।
तीसरे बुद्ध का नाम शरणंकर बुद्ध है। यहीं द्राविड़ों का शंकरण है। शंकरण द्राविड़ क्षेत्र के प्रचलित नामों में मिलते हैं जैसे शंकरण नायर, वी. शंकरण आदि। इसे भाषाविज्ञान में वर्ण - व्यत्यय कहते हैं जैसे वाराणसी का बनारस, लखनऊ का नखलऊ आदि।
पाँचवें बुद्ध का नाम कोण्डभ है। यह भी द्रविड़ नाम है। मगर ज्यों - ज्यों हम सिंधु घाटी सभ्यता से गौतम बुद्ध की तरफ चलते हैं, त्यों - त्यों बुद्धों के नाम प्राकृत भाषा का होते जाते हैं। मिसाल के तौर पर तिस्स, विपस्सी, वेस्सभू, कस्सप जैसे नाम प्राकृत के हैं।
28 बुद्धों के नामों से हम सिंधु घाटी सभ्यता से गौतम बुद्ध के काल तक की सभ्यताई यात्रा कर सकते हैं।
Dr Rajendra Prasad Singh