गोरखपुर महोत्सव यानी सवर्ण हिन्दू उत्सव, ‘अछूतों’ और मुसलमानों का प्रवेश वर्जित
गोरखपुर में 11,12,13 जनवरी गोरखुपर महोत्सव का आयोजन चल रहा है। यह हर दृष्टि से सवर्णोंत्सव है। मैं सिर्फ इन 3 दिनों के ‘कृति और कृतिकार’ में यानी साहित्यिक कार्यक्रम पर बात करूंगा।
कुल 18 साहित्यकारों-लेखकों को गोरखपुर का प्रतिनिधि साहित्यकार मानकर आमंत्रित किया गया। इन 18 में से कोई कोई एक भी साहित्यकार दलित समाज का नहीं है यानी ‘अछूतों’ को दक्खिन टोला वाला मानकर पूरी तरह बाहर कर दिया गया है। योगी जी की नगरी में मुसलमानों के प्रवेश का तो सवाल ही नहीं उठता।
ऐसा नहीं है कि गोरखपुर में कोई दलित साहित्यकार नहीं है। गोरखपुर में बी.आर. विप्लवी जैसे देशभर में ख्याति प्राप्त गजलकार हैं, तो दूसरी तरफ सुरेश चंद्र जैसे महत्वपूर्ण कवि भी हैं। रही बात चिंतक-लेखक की तो डॉ. अलख निरंजन जैसे लेखक भी हैं, जिनकी किताब पेंग्विनी जैसे नामी-गिरामी प्रकाशन संस्थान ने प्रकाशित हुई है।
18 साहित्यकारों में 10 बाभन हैं, 4 लाला, 2 वैश्य और एक क्षत्रिय है। वर्ण-व्यवस्था का उल्लंघन करते हुए एक शूद्र ( कुशवाहा) को भी जगह दी गई। अतिशूद्रों ( ‘अछूतों&rsquo
का प्रवेश पूर्णत: वर्जित।
बाभनों की सूची-
प्रोफेसर रामदेव शुक्ल, प्रोफेसर विश्ननाथ प्रसाद तिवारी,प्रोफेसर वशिष्ठ ‘अनूप’, आद्या प्रसाद द्विवेदी, विभा त्रिपाठी, सृजन गोरखपुरी, डॉ. चेतना पाण्डेय, श्रीधर मिश्र, धर्मेंद्र त्रिपाठी, कपिल देव
लाला- रविंद्र श्रीवास्तव जुगानी, मदन मोहन, प्रोफेसर जितेन्द्र श्रीवास्तव, देवेन्द्र आर्य
वैश्य- अनिता अग्रवाल, रंजना जयसवाल
क्षत्रिय-सदानंद शाही
एक शूद्र जिसे प्रवेश मिला- सुभाष चंद्र कुशवाहा
अतिशूद्र यानी अछूत- 0