Kamaljeet Jaswal's Album: Wall Photos

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लुंमिनि ही गौतम बुद्ध की माँ का वास्तविक नाम था, महामाया नाम बाद का है। जैसे बुद्ध का सिद्धार्थ नाम बाद का है, पहले का नाम सुकिति है। जैसे बुद्ध की पत्नी का यशोधरा नाम बाद का है, पहले का नाम कच्चाना है। महामाया, सिद्धार्थ और यशोधरा जैसे नाम बुद्ध की जीवनी में तब जुड़े, जब संस्कृत का आगमन हुआ। बुद्ध के समय में संस्कृत भाषा नहीं थी। इसलिए हमें महामाया, सिद्धार्थ और यशोधरा जैसे संस्कृत नामों की उम्मीद बुद्ध के समय में नहीं करनी चाहिए।

अशोक के अभिलेख पर जो " लुंमिनि " लिखा है, फाहियान ने जिसे " लुंमिन " कहा है और जिसे ह्वेनसांग ने " ला - फा - नी " उच्चरित किया है, वही वर्तमान में " रुम्मिन " है। लुंमिनि बुद्ध की माँ का नाम था और वन में जहाँ बुद्ध जन्म लिए थे, उस स्थान का नाम उनकी माँ के नाम के आधार पर लुंबिनी पड़ा।

लुंमिनि, लुंबिनी, रुम्मिन आदि एक ही शब्द के परिवर्तित रूप हैं। वर्तमान में बुद्ध की माँ लुंमिनि की पूजा रुम्मिन ( देई ) के नाम से वहाँ की जाती है। देई वस्तुतः देवी का बोधक है। यही पर अशोक का रुम्मिन देई स्तंभलेख है, जो बुद्ध के जन्म - स्थान को प्रमाणित करता है।

स्तंभलेख से कुछ कदमों पर पूजा- स्थल है। पूजा - स्थल पर बुद्ध की जन्मकथा को संजोए हुए तीन परिचारिकाओं के साथ रुम्मिन देई की मूर्ति है।

रुम्मिन देई की मूर्ति जीर्ण - शीर्ण है। यह मूर्ति बुद्ध की जन्मकथा का प्रतिनिधित्व करती है। मूर्ति में सबसे दाहिने रुम्मिन देई की मूर्ति है। रुम्मिन देई अपने दाहिने हाथ से शाल वृक्ष की शाखाओं को पकड़ी हुई हैं। मूर्ति के बाएँ तीन परिचारिकाएँ हैं।

मूर्ति अशोक काल की है। मूर्ति में जो पीलापन लिए पत्थर लगे हैं, वहीं पत्थर अशोक के रुम्मिनदेई स्तंभ में भी है।

रुम्मिन देई की विशेष पूजा नेपाली महीने के बैसाख में पूर्णिमा के दिन की जाती है। सभी सबूत बताते हैं कि वर्तमान की रुम्मिन देई ( देवी ) ही अशोक काल की लुंमिनि है, वही बुद्ध की माँ का वास्तविक नाम है तथा लुंमिनि के नाम पर ही अशोक काल में उस गाँव का नाम भी लुंमिनि गाम पड़ा, जो अभिलेख पर अंकित है।

अशोक काल में बनी बुद्ध की माँ लुंमिनि की यह मूर्ति है।