हमारे महान बाबासाहेब का भारत देश की अर्थव्यवस्था में योगदान.......
वैसे तो आज का दिन लोग मूर्ख दिवस के रूप में ही मनाते रहे हैं, परंतु बहुत ही काम लोगो को ही पता होगा की भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार,
"भारतीय रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया की स्थापना, 1अप्रैल 1935 में बाबा साहेब डॉ. बी.आर. अम्बेडकर द्वारा हिल्टन यंग कमीशन के समक्ष प्रस्तुत किये गए विचारों के आधार पर किया गया था |"बाबासाहेब डॉ बी. आर.अम्बेडकर विदेश जाकर अर्थशास्त्र डॉक्टरेट कीडिग्री हासिल करने वाले पहले भारतीय थे।
भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना में इन्होंने एक बड़ी भूमिका निभायी क्योंकि वो एक पेशेवर अर्थशास्त्री थे। अर्थशास्त्र पर अपने तीन सफल अध्ययनशील किताबों जैसे “प्रशासन और ईस्ट इंडिया कंपनी का वित्त, ब्रिटिश इंडिया में प्रान्तीय वित्त के उद्भव और रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और समाधान” के द्वारा हिल्टन यंग कमीशन के लिये अपने विचार देने के बाद 1934 में भारत के रिजर्व बैंक को बनाने में वो सफल हुये।इन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था की योजना में अपनी भूमिका निभायी क्योंकि कि उन्होंने अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री विदेश से हासिल की थी। देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिये औद्योगिकीकरण और कृषि उद्योग की वृद्धि और विकास के लिये लोगों को बढ़ावा दिया। खाद्य सुरक्षा लक्ष्य की प्राप्ति के लिये उन्होंने सरकार को सुझाव दिया था। अपनी मूलभूत जरुरत के रुप में इन्होंने लोगों को अच्छी शिक्षा, स्वच्छता और समुदायिक स्वास्थ्य के लिये बढ़ावा दिया। इन्होंने भारत की वित्त कमीशन की स्थापना की थी।.
डॉ. अंबेडकर की विरासत और भारत को उनके योगदान के दर्शन बहुत से क्षेत्रों में किए जा सकते हैं। ‘द इवोल्यूशन ऑफ प्रोविंसियल फाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया’ शीर्षक से पी-एच.डी. के उनके 1923 के शोध-पत्र ने भारत के वित्त आयोग के लिए सैद्धांतिक आधार प्रदान किया, जिसे बाद में वित्त की ऊर्ध्व और क्षैतिज संतुलन की समस्या के समाधान के लिए संविधान के अनुच्छेद 280 के द्वारा स्थापित कियागया। इसी प्रकार,भारतीय रिजर्व बैंक की संकल्पना भी डॉ. अंबेडकर द्वारा 1925 में ‘‘रॉयल कमीशन ऑन इंडियन करेंसी एंड फाइनेंस’’के समक्ष प्रस्तुत दिशा-निर्देशों पर आधारित थी। आयोग के सदस्यों ने डॉ. अंबेडकर की पुस्तक ‘द प्रॉब्लम ऑफ द रुपी—इट्स प्रॉबलम्स एंड इट्स सोल्यूशन’ को एक अमूल्य संदर्भ स्रोत मात्र और केंद्रीय विधायी सभा ने इन दिशा-निर्देशों को अंतत: भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 के रूप में पारित कर दिया।
Economics का Nobel Prize जीत चुके अर्थशास्त्री प्रो. अमर्त्यसेन डॉ. बी आर अम्बेडकर को अर्थशास्त्र में अपना पिता मानते हैं।