भारतीय संस्कृति में सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के बारे में जितना मूर्खतापूर्ण अन्धविश्वस फैला हुआ है मेरे हिसाब से वैसा अन्यत्र कंही नहीं होगा। हमारे पंडितों और धर्म गुरुओं ने लोगो को पाप पुण्य के नाम पर इन ग्रहणों के जरिये जितना लूटने का काम किया है उतना शायद ही किसी देश में मिलता हो।
ग्रहणों से होने वाले काल्पनिक दुष्परिणामो के बारे में पंडित - धर्मगुरू भविष्यवाणियां कर के लोगो के मन में आतंक और भय भर देते है , दुष्परिणामो से बचने के लिए तरह तरह की विधियों द्वारा दान पुण्य की ऐसी महिमा गा देते हैं कि अच्छा खासा पढ़ा लिखा भी इनके जाल में फंस के काल्पनिक दुष्परिणामो से घबरा के अपनी अक्ल खूंटी पर टांग देता है। नदी नालों के पानी में डुबकी लगाने के साथ साथ वो सब करता है जो पूर्ण रूप से अवैज्ञनिक तो होता ही है साथ में अपनी जेब भी ढीली कर देता है।
ग्रहण के प्रभाव को सिद्ध करने के लिए पंडित - धर्म गुरु तर्क देता है कि प्राकृतिक घटनाओं का असर तो हमारे ऊपर पड़ता ही है , सूर्य- चंद्र भी ऐसी ही प्राकृतिक घटनाये होती है अतः मनुष्य पर असर पड़ता ही है। किंतु यदि हम उनके इस दावे को गौर से पड़ताल करे तो उनकी चालकी पता चल जाती है।
चालकी यह देखिये की पंडित -धर्म गुरु ग्रहण को केवल प्राकृतिक घटना नहीं मानते , शास्त्रों के अनुसार ग्रहण तब होता है जब राहु -केतु नाम के असुर सूर्य या चंद्र को निगल लेते है । राहू-केतु के सूर्य या चंद्रमा को निगलने का कारण यह बताया गया है कि समुन्दर मंथन के समय असुर राहु देवताओं की लाइन में लग के छल से अमृत पी लेता है , चंद्रमा और सूर्य उसकी शिकायत विष्णु से कर देते हैं। कुपित हो विष्णु उसके शरीर के दो टुकड़े कर देते हैं जिसका एक हिस्सा राहु तो दूसरा केतु कहलाया । राहु चंद्रमा और सूर्य से बदला लेने के लिए जब जब उन्हें निगल लेता है तभी ग्रहण होता है। अब यदि पण्डे लोग इसे प्राकृतिक घटना मानते हैं तो काल्पनिक राहु केतु कँहा से घुसा दिया ? जाहिर सी बात है लोगो को लूटने के लिए।
अब बात यह है कि प्राकृतिक घटनाओं का असर जैसा हमारे तन और मन पर पड़ता है वह धूर्त पंडितों और धर्म गुरुओं द्वारा बताये गए असर से भिन्न होता है। जैसे सूरज की किरणें हमारे शरीर को प्रभावित करती है , तेज धूप में हमें लू लग सकती है डिहाइड्रेशन हो सकता है या त्वचा जल सकती है।
सर्दी से जुखाम हो सकता है , बारिश में भीगने से बीमार पड़ सकते हैं। ऋतुएँ बदलने के कारण हमारे कृषि आदि पर प्रभाव पड़ता है।इस तरह के सभी प्रभाव भौतिक पादर्थो के पारस्परिक सबन्धो के प्रभाव से होते हैं। इन प्रभावों को वैज्ञानिक प्रयोगशाला में जांचा जा सकता है अथवा प्रत्यक्ष प्रयोगों द्वारा इन्हें आसानी से देखा और समझा जा सकता है। इनके पीछे किसी अभौतिक , आध्यात्मिक जैसे कोई कारण नहीं होते ।
ग्रहण होने पर ज्योतिष लोग अपनी अपनी धूर्तता की पेटी खोल के सामूहिक और व्यक्तिगत स्तर पर तरह तरह के अंट-शंट भविष्यवाणियां करते हैं, आज भी कर रहे हैं। अमुक राशियों पर क्या असर होगा , कौन सा मन्त्र पढ़ना चाहिए ताकि असर न हो आदि तरह तरह की भविष्यवाणियां करने लग जाते हैं । इन धूर्त ज्योतिषियो की बातों में आ के लोग इनके दरवाजे पर माथा टेकने पहुँच जाते है , और फिर ये धूर्त लोग भोले भाले लोगो को जम के ऐठ लेते हैं। टीबी पर देख रहा था के ज्योतिष बता रहा था कि कर्क राशि वालो के लिए नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और स्वास्थ्य खराब रहेगा जिससे बचने के लिय उपाय यह बता रहा और साथ में अपना पता भी दे रहा था कि जिसे उपाय चाहिए वह इससे संपर्क करे। है न धूर्तता की पराकाष्ठा ! न जाने कितने लोगो को लूटा होगा उसने, गली - मोहल्ले में बैठे धूर्त पंडितों, ज्योतिषियों की तो कोई गणना ही नहीं जिन्होंने लोगो को जम के लूटा होगा।
ग्रहण एक प्राकृतिक घटना है जो जब चंद्रमा पृथ्वी के ठीक पीछे उसकी प्रच्छाया में आ जाता है। ऐसा तभी हो सकता है जब सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा इस क्रम में लगभग एक सीधी रेखा में अवस्थित हों तब चंद्र ग्रहण लगता है, यह जानकारी आज माध्यमिक विद्यालयों में पढ़ाया जाता । किन्तु यह सब जानने के बाद भी लोग धूर्तो के बहकावे में आ जाते हैं।
जागरूक कीजिये अपने आसपास के लोगो को ताकि आने वाली पीढ़ी ग्रहण के नाम पर मूर्ख न बने।