एक रोज एक # नास्तिक के सपने में भगवान आया और नास्तिक से कहा माँग जो माँगना है। मैं तुझको कुछ देना चाहता हूँ ।
नास्तिक ने कहा तू तो आज तक मुझसे लेता आया है, क्या देगा तू मुझको। तू मुझको कुछ नही दे सकता।
भगवान ने कहा क्यों ? दुनिया तो मुझसे माँगती है।
नास्तिक ने कहा दुनिया अगर तुझसे माँगती है, तो फिर तू दुनिया से क्यों माँगता है ?
भगवान ने कहा मैंने किसी से कब माँगा है ?
नास्तिक ने कहा किसी से तू भोजन माँगता है, किसी से दूध माँगता है, किसी से घी माँगता है, किसी से माखन माँगता, किसी से तेल माँगता है। किसी से वस्त्र माँगता है तो किसी से आभूषण माँगता है।
भगवान ने कहा ये कौन कहता है कि मैं माँगता हूँ ? क्या किसी ने कभी मुझको माँगते हुए देखा है ?
नास्तिक ने कहा ऐसा तेरे भक्त ही कहते हैं। तेरे पुजारी कहते हैं। तेरे एजेंट कहते हैं कि तुम इंसान से माँगता है।
भगवान ने कहा मैंने तो उनसे नहीं कहा।
नास्तिक ने कहा अगर तूने नही कहा, तो फिर तू उनको रोकता क्यों नही ? क्या तू उनको रोक सकता है ?
अब भगवान चुप और सन्नाटा।
नास्तिक ने कहा तू नही रोक सकता, क्योंकि तू ही उनकी हीं रचना (कृति) है । उन्होंने तुझको बनाया है । लोगो के मन में तेरा भय पैदा कर तुम्हारा श्रृजन किया है। तेरी उत्पत्ति ही भय से हुई है। जिस दिन भय ख़त्म हो जायेगा। तू भी उसी दिन ख़त्म हो जायेगा। नास्तिक ने कहा तू किसी को क्या दे सकता है ? तू तो खुद सिर से पॉव तक लोगों के कर्ज में डूबा है।
उसने कहा मैंने किससे कर्ज लिया है ?
नास्तिक ने कहा जिन्होंने तुझको दिया है।
क्या तूने उनको कभी वापिस दिया है ? नहीं ना ? तो फिर तू उनका कर्जदार कैसे नही है ? जो लेकर नही देता उसको बेईमान कहते हैं, ठग और धोखेबाज कहते हैं।
और भगवान रेत के ढेर की तरह भरभरा कर गिर पड़ा। अब वहाँ कुछ शेष नही था, क्योंकि भगवान का डर ख़त्मish हो चुका था।