गरीबों को शिक्षा से दूर कर देने की साजिश! UGC ख़त्म करके पूँजीवाद और जातिवाद बढ़ा रही है मोदी सरकार
 Adnan Ali 4 days ago
भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहाँ आर्थिक असमानता सबसे ज़्यादा बढ़ रही है। अब मोदी सरकार शैक्षिक असमानता बढ़ाने की तैयारी में भी है। मोदी सरकार देश के शिक्षा संस्थानों को अमीरों की जागीर बना देना चाहती है।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को खत्म कर उसकी जगह एक नया आयोग बनाने का प्रस्ताव रखा है। खबर के मुताबिक सरकार की दलील है कि वह इस कदम से विश्वविद्यालयों पर से ‘निरीक्षण राज’ खत्म करना चाहती है।
योजना के मुताबिक नया आयोग केवल अकादेमिक मामलों पर ध्यान देगा और अनुदान देने का काम मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय के जिम्मे होगा।
मंत्रालय के मुताबिक नए आयोग के गठन के बाद शिक्षा संस्थानों के लिए बाहर से नियम तय होने की गुंजाइश कम हो जाएगी और इससे संस्थानों की प्रबंधकीय समस्याओं में सरकारी हस्तक्षेप नहीं रह जाएगा।
साफ़ शब्दों में कहे तो शिक्षा संसथान मन मुताबिक, कई तरह के बदलाव कर सकेंगे। सरकार इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगी। ये बदलाव कोर्स स्ट्रक्चर से लेकर फीस बढ़ाने तक कई क्षेत्रों में करे जा सकेंगे। ये कदम उस देश के लिए घातक है जहाँ दुनिया की दूसरी सबसे ज़्यादा गरीब आबादी रहती। और जहाँ आज भी उच्च शिक्षा का बुरा हाल है। अधिकतर लोग साक्षर ज़रूर हैं लेकिन शिक्षित नहीं।
मोदी सरकार लगातार इस कोशिश में है कि कैसे देश में बचे कुचे शिक्षा संस्थानों को भी एक व्यवसाय का रूप दे दिया जाय। इसलिए कुछ महीने पहले केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने देश के 60 शिक्षण संस्थानों को स्वायत्तता दे दी है। 5 केंद्रीय विश्वविद्यालय जिनमें जेएनयू, बीएचयू, अलीगढ़ विश्वविद्यालय भी शामिल हैं। 21 राज्य विश्वविद्यालय, 24 डीम्ड यूनिवर्सिटी, 2 प्राइवेट विश्वविद्यालय और 8 निजी संस्थानों को स्वायत्ता दी गई है।
फेडरेशन ऑफ सेंट्रल यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (एफईडीक्यूटीए) ने फैसले को शिक्षा में बाज़ारवाद को बढ़ावा देने वाला और मार्केट आश्रित करने के लिए गुमराह करने का प्रयास बताया था। वहीं अब जेएनयू टीचर्स एसोसिएशन (जेएनयूटीए) ने भी इस फैसले की आलोचना की थी।
इस गज़ट नोटिफिकेशन के खंड 4.1 से 4.4 तक में कहा गया है कि शिक्षा संस्थानों को अब नए विभाग, नए कोर्स और नए केंद्र आदि खोलने या शुरू करने के लिए यूजीसी की अनुमति नहीं चाहिए होगी। लेकिन ये सब ‘सेल्फ-फिनान्सिंग’ यानि अपने पैसे पर किया जाएगा सरकार इसके लिए कोई पैसा नहीं देगी। इस कारण शिक्षा संस्थान फीस बढ़ा सकते हैं। गरीब छात्रों के लिए शिक्षा पाने के अवसर घट सकते हैं।
देश में अभी भी संसाधनों की कमी के कारण पिछड़ा और गरीब तबका उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर पाता है। अभी भी देश में लगभग आठ प्रतिशत लोग ही ग्रेजुएट हैं। ऐसे में सरकार का शिक्षा को महंगा बनाने के ऐसे फैसले देश की बड़ी युवा आबादी के लिए घातक साबित हो सकते हैं।
एक आदर्श सरकार और व्यवस्था की पहचान ये होती है कि उसकी योजनाओं का लाभ समाज के उस आखिरी व्यक्ति तक पहुंचे जो सामजिक और आर्थिक तौर से सबसे ज़्यादा पिछड़ा है। लेकिन यहाँ सरकार लाभ पहुँचाने के बजाए खुद ही इन रास्तों को बंद कर रही है।
सरकार द्वारा शिक्षा को महंगा करने के ये कदम कई संभावनाओं को पैदा करते हैं। बढ़ती बेरोज़गारी से लेकर देश में घोर जातिवाद सभी इसके दायरे में आते हैं। इस दौर में युवाओं को अशिक्षित बनाने का ज़िम्मा सरकार ने उठा लिया है। आने वाले समय में शायद उनके पास ये बहाना ज़रूर होगा कि जब युवा शिक्षित ही नहीं हैं तो हम रोज़गार किसे दें।
इस देश में सबसे ज़्यादा पैसे की कमी दलित-आदिवासी और अल्पसंख्यक समाज को है। इसीलिए ही इनको शिक्षा संस्थानों में आरक्षण और फीस में रियायत प्राप्त है। लेकिन इस कदम से इनकों मिली रियायत भी छिन सकती है। हाल ही में मुंबई के मशहूर शिक्षा संसथान टिस (TISS) में ऐसा ही मामला सामने आया था। यहाँ दलित छात्रों को फीस में मिली छूट खत्म कर दी गई थी। इसके विरोध में कई प्रदर्शन भी हुए। यहाँ भी संसथान ने कहा था कि सरकार का ये कदम उस पूंजीवादी विचार को भी बढ़ावा है जो पूर्ण शिक्षित समाज नहीं चाहता। शिक्षा से वंचित युवा बेरोज़गारी झेले और उद्योगों के मनमाने वेतन पर काम करे।
इस समय राजनेताओं को शिक्षित युवाओं का समाज नहीं बल्कि युवाओं की एक ऐसी भीड़ चाहिए, जो विपक्ष की सरकार गिराने और क्षेत्रों का माहौल ख़राब करने के लिए हाथ में तलवार लेकर धर्म और फर्ज़ी-राष्ट्रवाद के नाम पर सड़क पर घूम सके। वर्तमान में पश्चिम बंगाल इसका उदाहरण है।
बाकि समय काटने के लिए एक जीबी इन्टरनेट का तौफा दे ही दिया गया है। उसमें भी आपको सोशल मीडिया वेबसाइट पर राजनेताओं का भक्त बनाने का काम जारी है। ये एक ऐसे समाज की शुरुआत है जिसमें संपत्ति से लेकर शिक्षा तक की गैर बराबरी होगी। ये शुरुआत है एक भयानक अंत की।
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