Kamaljeet Jaswal's Album: Wall Photos

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आज दिनांक ६.जानेवारी २०१९ “ जय भीम” शब्द के जनक बाबू हरदास कि ११५ वी जयंती दिवस पर ऊनको कोटी-कोटी प्रणाम
“जय भीम” आज बहुजन अस्मिता और एकता का प्रतीक बन चुका है. हर बहुजन युवा उत्साह से “जय भीम” के साथ एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं. “जय भीम” शब्द की उत्पत्ति महाराष्ट्र में हुई. इस “जय भीम” शब्द के जनक बाबू हरदास एल. एन. थे, जो 1921 में बाबासाहब डाॅ अम्बेडकर के साथ सामाजिक आंदोलन में उतरे. बाबू हरदास का परिवार पढ़ा-लिखा था. पिता लक्ष्मण उरकुडा नगराले रेलवे विभाग में बाबू थे. उस समय देश में वर्णभेद और जाति भेद के कारण भीषण सामाजिक और आर्थिक विषमता फैली हुई थी. सन 1922 में महाराष्ट्र के अछूत संत चोखामेला के नाम पर उन्होंने एक छात्रावास शुरू किया. 1924 में उन्होंने एक प्रिंटिंग प्रेस खरीदी थी और सामाजिक जागृति के लिये “मंडई महात्म्य” नामक किताब सामाजिक जागृति के लिये लिखी थी, साथ ही “चोखामेला विशेषांक” भी निकाला था.
बाबासाहब के आंदोलनों में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. 1930 के नासिक कालाराम मंदिर सत्याग्रह तथा 1932 में पूना पैक्ट के दौरान उन्होंने बाबासाहब के साथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

“जय भीम” का संबोधन पहली बार उनके मन में एक मुस्लिम व्यक्ति को देखकर आया. उस समय कार्यकर्त्ताओं के साथ घूमते हुये रास्ते में एक मुस्लिम को दूसरे मुस्लिम से “अस्सलाम-अलेकुम” कहते हुये सुना. जवाब में दूसरे व्यक्ति ने भी “अलेकुम-सलाम” कहा. तब बाबू हरदास ने सोचा कि हमें एक दूसरे से क्या कहना चाहिये? उन्होंने कार्यकर्त्ताओं से कहा, “मैं ‘जय भीम’ कहूँगा और आप ‘बल भीम’ कहिये. उस समय से ये अभिवादन शुरू हो गया, पर बाद में ‘बल भीम’ प्रचलन से गायब हो गया, केवल ‘जय a’ ही प्रचलन में रहा. 1933-34 में बाबू हरदास ने समता सैनिक दल को ‘जय भीम’ का नारा नागपुर में दिया. इस तरह ‘जय भीम’ हर जगह छा गया. बाद में डाॅ अम्बेडकर ने खुद भी 1949 में अपने पत्रों में जय भीम लिखना और कहना शुरू कर दिया था. 12 जनवरी 1939 को उनका परिनिर्वाण हो गया था. उस दिन उनको श्रद्धांजलि देते समय बाबासाहब ने कहा था, “बाबू हरदास के रूप में मेरा दाहिना हाथ चला गया.”