एससी-एसटी अधिनियम की बहुत सी जानकारियां हमारे लोगों को नहीं है!
अतः बताना चाहूंगा कि मुकदमा दर्ज होने के बाद पीड़ित इस लिये घबराता है क्योंकि लोग उसे कहते है कि पुलिस और कोर्ट के चक्कर काटने पड़ेंगे। सिर्फ एक बार FIR कराने में संघर्ष करना होता हैं!
क्योंकि पुलिस आसानी से करती नहीं है, पर जब दर्ज हो जाती है तो अनुशंधान अधिकारी की जिम्मेदारी हो जाती है सारी कार्रवाई करने की। 15 दिन में एसपी खुद पूछ लेता है। क्या किया क्या नहीं किया?
पीड़ित को एक बार सारे बयान करवाने होते है ओर घर पर नक्शा बनवाना होता है और सारे डॉक्यूमेंट देने होते है! ये सारी करवाई पीड़ित के घर बैठ कर ओर मोके पर होती है।जहां की घटना होती है और सब कुछ vedio रिकॉर्डिंग के साथ होता है।
जिसके लिए वह चाहे, तो घर बेठ कर करवा सकता है और महिलाओं को तो कोई भी थाने नहीं बुला सकता।
इसके अलावा दूसरी बार कोर्ट में जब बयान होते है, तब जाना होता है! चालान के बाद जो कम से कम एक साल बाद होते है। इसके अलावा कहि धक्के नहीं खाने होते है! साथ ही सरकारी वकील के साथ खुद का वकील करने की इजाज़त होती है।
यदि अनुसंधान अधिकारी यह नहीं कर रहा है, तो सीधे SP ओर IG को या संपर्क पोर्टल पर शिकायत कर दे! कहिं जाने की जरूरत नहीं है! रजिस्टर्ड लैटर से हर 15 दिन में भेजते रहे।
साथ ही एक्ट में आर्थिक सहायता भी मिलती है जो 2018 से FIR दर्ज होने पर 25%, चालान पर 50% ओर दोष सिद्ध होने पर 25 % मिलती है!
जिसमे पीड़ित को सिर्फ अपना आधार ओर बैंक खाता नंबर और कास्ट सर्टिफिकेट अनुशंधान अधिकारी को ओर थानाधिकारी को देना होता है। बाकी सब कुछ थाने वाले को करना होता है, जो अनिवार्य है।
अतः पैसों के लिए राजीनामे नहीं करे! बल्कि सरकार से आर्थिक सहायता प्राप्त करें और वकील को देकर अच्छी कारवाई करवाये । 01 लाख से 10 लाख तक सहायता मिलती है।
अतः हर मुकदमे को चालान तक पहुँचाए और 75% राशि प्राप्त करे और इनसे वकील से कोर्ट में पैरवी करवाये ।
आप के राजीनामे एक्ट को झूठ साबित कर रहे है! जिससे एक्ट के आंकड़े यह बताते है कि 60% मुकदमे झूठे होते है। क्योंकि पुलिस फ़ाइल में कभी भी राजीनामा नहीं लिख सकती है!
सिर्फ दो ही कथन लिख सकती है कि तथ्यों से मामला सही पाया या झूठा पाया गया है।
इस राजीनामे से सारे मामले झूठे हो रहे है और सुप्रीम कोर्ट में sc st एक्ट में बदलाव का मुख्य कारण यही आंकड़े थे!
अत:मुकदमा दर्ज होने के बाद राजीनामा हरगिज/कतई नहीं करे चाहे परिणाम कुछ भी आए ।
अतः अपनी ओर दुसरों की मानसिकता बदले ओर समाज और एक्ट दोनों को बचाये, नहीं तो यह वापस बदल सकता है।