एडोल्फ हिटलर ने अपनी आत्म-कथा में लिखा हैः अगर किसी कौम को संगठित करना हो तो किसी दूसरी कौम के प्रति घृणा पैदा कर दो। कोई खतरा पैदा कर दो।
मुसलमान को इकट्ठा होना होता है, तो वह कहता है, इसलाम खतरे में है, और तब मुसलमान इकट्ठा हो जाते हैं।
और हिंदू को इकट्ठा होना हो, तो वह कहता है, हिंदू धर्म खतरे में है, और हिंदू इकट्ठे हो जाते हैं।
अभी पाकिस्तान का हमला भारत पर हुआ या चीन का, तो सारे भारत में एकता मालूम पड़ी, वह एकता एकदम खतरनाक और झूठी है।
वह प्रेम की एकता नहीं है। वह तो सामने खड़े दुश्मन के खिलाफ जो हमारे मन में घृणा है, उसकी एकता है। दुश्मन चला जाएगा, एकता भी चली जाएगी।
ये हमारे सारे संगठन, जिनको हम धर्म कहते हैं, किसी की घृणा पर खड़े हुए हैं।
और घृणा का धर्म से क्या संबंध हो सकता है ???
मेरे और आपके बीच जो चीज भी घृणा लाती हो वह धर्म नहीं हो सकती। मेरे और आपके बीच जो चीज प्रेम लाती हो वह धर्म हो सकती है।
और यह भी स्मरण रखें, अगर मनुष्य को मनुष्य से तोड़ देती हो कोई चीज तो वही चीज मनुष्य को परमात्मा से कैसे जोड़ सकेगी ???
मनुष्य को मनुष्य सेे तोड़ देने वाली कोई बात मनुष्य को परमात्मा से जोड़ने वाली बात कभी भी नहीं बन सकती। लेकिन जिनको हम धर्म कहते हैं वे हमें तोड़ रहे हैं। यद्यपि वे सभी प्रेम की बातें करते हैं। और वे सभी इस बात की भी बातें करते हैं--हम सबके बीच एकता, भ्रातृत्व, ब्रदरहुड की।
लेकिन बड़ी हैरानी की बात है, उनकी सारी बातें बातें ही रह जाती हैं और वे जो भी करते हैं उससे घृणा फैलती हैै और शत्रुता फैलती है।