Kamaljeet Jaswal's Album: Wall Photos

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कुछ ऐसे महापुरुष होते हैं,जिनके ऋण से समाज कभी ऊऋण नहीं हो सकता.वे ऐसे कार्य किये होते हैं, जिससे एकनए समाज की नींव बनती है.एक नया इतिहास रचता है. बंगाल के नमोशुद्रा समाज में पैदा होने वाले जोगेंद्रनाथ मंडल ऐसी ही शख्सियत हैं.सन 1945-46 के आम चुनाव में कांग्रेस ने पक्का बंदोबस्त कर रखा था कि दबी-पिछड़ी जातियों का कोई सदस्य जीत कर संविधान सभा में न पहुँच पाए.जोगेन्द्रनाथ मंडल ने वह कर दिखाया कि बाबा साहेब न सिर्फ चुनाव जीते वरन संविधान-सभा में पहुँच कर भारतीय संविधानका शिल्पकार बने.बंगाल जो अब बांगला देश में है, में 12 सदी के दौरान में नमोशुद्रासमाज सत्ता में था.तब,इस समाज ने बौद्ध धर्म को बड़े पैमाने पर अपनाया था. नमोशुद्रा समाज का मुख्य व्यवसाय कास्तकारी और मछली पालन था.मगर,बाद में यह समाज हिन्दू-घृणा से रसातल में पहुँच गया. उनकी गिनती दलित अस्पृश्य-जातियों में होने लगी.हिन्दुओं के अत्याचारों से तंग आकर 18 वी सदी में इस जमात के काफी लोग इस्लाम और ईसाई धर्म में धर्मान्तरित हुए.भारत-पाकिस्तान बटवारे के समय इस जमात का बड़ा भाग पाकिस्तान में चला गया था.इस दौर में नमोशुद्रा जमात के काफी लोग प.बंगाल और आसाम में शरणार्थी बन कर आये.नमोशुद्रा समाज में बड़े-बड़े समाज-सुधारक हुए. हरिचंद ठाकुर उनमे से एक थे. इनका जन्म सफलीडगा में हुआ था. हरिचंद ठाकुर ने अपने समाज के लोगों को कहा था कि उन्हें मुस्लिम या ईसाई धर्म में जाने की जरुरत नहीं है.उन्हें ब्राह्मणों के देवालयों में भी जाने की जरुरत नहीं है.वे सामाजिक व्यवहार में सुधार लाकर अपनी स्थिति बेहतर कर सकते हैं.हरिचंद ठाकुर की मृत्यु सन 1879में हुई थी.हरिचंद ठाकुर के बाद दूसरे नमोशुद्रा समाज में गुरुचंद ठाकुर हुए थे.गुरुचंद ठाकुर ने शिक्षा पर जोर देते हुए अपने समाज के बच्चों के लिए कई पाठ-शालाएं खोली थी.नमोशुद्रा समाज में ही जोगेंद्रनाथ मंडल हुए थे.आपका जन्म 29 जन. 1904 को बरीसल जिले के मइसकड़ी में हुआ था.इनकी माता का नाम संध्या और पिताजी का नाम रामदयाल मंडल था.जोगेन्द्रनाथ मंडल 6 भाई-बहन थे जिनमे ये सबसे छोटे थे. बालक जोगेंद्र ने सन 1924 में इंटर और सन 1929 में बी. ए. पास किया था.उन्होंने अपने पोस्ट-ग्रेजुएशन की पढ़ाई पहले ढाका में और बाद में कलकत्ता विश्व-विद्यालय से पूरी की थी.पढ़ाई के दौरान जोगेंद्रनाथ को भारी आर्थिक तंगी और मुसीबतों का सामना करना पड़ा.दलित समाज में पैदा होने के कारण जोगेन्द्रनाथजी को अपने समाज की चिंता खाए जा रही थी. उन्होंने सोचा कि सरकारी नौकरी कर वे अपने समाज का अधिक भला नहीं कर पाएंगे. यही सोच कर उन्होंने सन 1935 में कलकत्ता हाईकोर्ट में वकालत करना शुरू किया.यहाँ पर उन्हें लगा कि वे अपने समाज से दूर है. अत: शीघ्रही वे अपने निवास बरीसल के जिला कोर्ट में जाकर प्रेक्टिश करने लगे.बरीसल में वकालत करते उन्हें अहसास हुआ कि अपने समाज के लिए वे बिना सत्ता के ज्यादा कुछ नहीं कर सकते. ये सोचकर वे राजनीति में कूद पड़े. वे कांग्रेस में शामिल हो गए.सन 1937 में उन्हें जिला काउन्सिल के लिए मनोनीत किया गया. इसी वर्ष उन्हें बंगाल लेजिस्लेटिव काउन्सिल का सदस्य चुना गया.सन 1939-40 तक वे कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के करीब आये मगर, जल्दी ही उन्हें एहसास हो गया कि कांग्रेस के एजेंडे में उसके अपने समाज के लिए ज्यादा कुछ करने की इच्छा नहीं है.इस बीच वे डा.आंबेडकर के सम्पर्क में आये. वे 19 जुला. 1942 को डा.आंबेडकर के 'अखिल भारतीय शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन' में अपने साथियों के साथ शामिल हो गए. बाद में उन्होंने बंगाल में शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन की स्थापना कर डा. आंबेडकर के कार्य को वहां अपने हाथ में लिया.आजाद भारत में कानून मंत्रीबनने के बाद डा. आंबेडकर शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के लिए समय नहीं निकल पा रहे थे. तब भी जोगेन्द्रनाथ मंडल ने इसका नेतृत्व सम्भाला था.कांग्रेस से निराश होकर जोगेन्द्रनाथ मंडल ने मुस्लिम लीग का साथ पकड़ा था.वे फर. 1943 में ख्वाजा नजीमुद्दीन-मंत्रिमंडल में इस शर्त के साथ सम्मिलित हुए कि सरकार शेड्यूल्ड कास्ट के कल्याण के लिए कुछ करेगी, अपने 21 एम्.ए ले. के साथ सम्मिलित हो गए.वे प्रथम कानून एवं श्रम मंत्री बने. शासन मेंरहते हुए जोगेन्द्रनाथ मंडल ने अस्पृश्य समाज के लोगों को शासकीय नौकरी में लाने के लिए भरपूर प्रयास किया. शिक्षा पर जोर देते हुए उन्होंने 'बैगई हालदार पब्लिक एकेडमी' की स्थापना कर नमोशुद्रों के लिए शिक्षण-संस्थाएं खोली.समाज केजागृति के लिए प्रचार-माध्यमों की महत्ती भूमिका होती है, इस सोच के साथ जोगेन्द्रनाथ मंडल ने 'जागरण' का साप्ताहिक प्रकाशन शुरू किया. इसी कार्यालय से उन्होंने शेडूल कास्ट फेडरेशन की बुलेटिन का भी प्रकाशन किया था.जोगेन्द्रनाथ मंडल विभाजन के बाद पुन: बंगाल से चुने जा कर अप्रैल 1946 में उन्हें सुहरावर्दी मंत्रि-मंडल में शामिल होने का मौका मिला था।बंगाल की राजसत्ता के दौरान जोगेन्द्रनाथ मंडल कई महत्वपूर्ण पद सम्भाले थे. उन्होंने वहां की दलित-शोषित जातियों के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किये.भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान दबी-पिछड़ी जातियों का जो कत्लेआम हुआ, जोगेन्द्रनाथ मंडल उससे बेहद आह़त हुए थे.उन्होंने सोचा था कि पाकिस्तान सरकार इन जातियों के साथ अन्याय नहीं करेगी. किन्तु ,पाकिस्तान सरकार ने विभाजन के दौरान इनकी कोई चिंतानहीं की. हताश होकर जोगेन्द्रनाथ मंडल 8 अक्टू. सन 1950 को लियाक़त अलीखां के मंत्री-मंडल से त्याग-पत्र दे कर भारत आ गए थे.इसी दौरान भारत के अन्तरीम सरकार में शामिल होने के लिए उन्हें आमंत्रणमिला.जोगेन्द्रनाथ मंडल इस शर्त पर राजी हुए थे कि अगर उनके नेता बाबा साहेब डा. आंबेडकर को पसंद नहीं आया तो उन्हें तुरंत त्याग-पत्र देने की अनुमति होगी.डा. आम्बेडकर तब गोल-मेज सम्मेलन में थे. जोगेन्द्रनाथ मंडल के टेलीग्राम पर डा. आम्बेडकर ने तत्काल आपत्ति नहीं ली थी.वे भारत सरकार के अंतरिम मंत्रिमंडल में शामिल हो गए थे.सन 1945-46 में आम चुनाव हुए थे. इस चुनाव के द्वारा विभिन्न राज्यों से 1585 लेजिस्लेटिव काउन्सिल के सदस्य चुने जाने थे. इन्हीं मेंसे कुछ को 'संविधान-निर्माण समिति' के लिए चुना जाना था.अनु. जातियों के लिए देशभर में कुल 151 स्थान आरक्षित थे.बंगाल की 30 सीटें थी जिसमें से 3 सीटें संविधान-निर्माण समिति के लिए थी. शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन ने देश भर मेंअपने उम्मीदवार खड़े किये थे जिसमे से 5 उम्मीदवार बंगाल से थे.जोगेन्द्रनाथ मंडल ने दो स्थानों से पर्चे भरे थे. शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के पास साधनों काभारी अभाव था जबकि कांग्रेस और मुस्लिम लीग के पास प्रचुर संसाधन थे.जब चुनाव के नतीजे आये तो शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन को सिर्फ एक सीट हासिल हुई थी जहाँ सेजोगेन्द्रनाथ मंडल चुन कर आये थे.देश के संविधान-निर्माण में दलितों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए, यह बात डा. बाबासाहेब आंबेडकर को परेशान किये जा रही थी.उधर,दलित समाज का कोई सदस्य चुनाव जीत न पाए, इसका कांग्रेस कमेटी ने पक्का बंदोबस्त कर रखा था.डा. आंबेडकरके कहीं से भी चुन कर आने की सम्भावना नहीं थी. स्थिति को भांप कर जोगेन्द्रनाथमंडल ने उन्हें बंगाल से नामांकन-पत्र भरने का न्यौता दिया. डा.आंबेडकर को जिताने की जिम्मेदारी जोगेन्द्रनाथ मंडल पर थी. उन्होंने बंगाल के सभी अनु. जातियों के विधायकों की बैठक बुलाई और उन्हें समझाया कि डा.आंबेडकर का जीतना क्यों जरुरी है ? जोगेन्द्रनाथ मंडल ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी और उनके अथक प्रयास से अंतत: डा. आंबेडकर चुनाव जीत गए. स्मरण रहे, इस चुनाव में बंगाल के कांग्रेसी सदस्यों ने भी डा. आंबेडकर की मदद की थी.जोगेन्द्रनाथ मंडल के इस योगदान का बहुजन मूलनिवासि समाज सदैव कृतज्ञ रहेगा.5 अक्टु.1968 को उनका देहांत हुआ।
जय भीम जय भारत।

A. K. Maurya 7011121296maha