जब लिंकन ने अश्वेतों की बेडियां कटवायी तो हाथ पैर सुन्न होने के कारण अश्वेतों को महीनों नींद नहीं आई और वे दहाड़े मारकर लिंकन को कोसते रहे कि हमारे जन्म जन्म के गहने छीन लिए , क्योंकि वे जन्म जन्मान्तर से उसी के आदी हो चुके थे । यही हाल आज हमारे समाज का है । जब भी कोई व्यक्ति हमारे इस समाज को हिन्दू(ब्राह्मण) देवी देवताओं के प्रपन्च से मुक्त होकर अपने गुरुओं, महापुरुषों आदि को जानने और उनके द्वारा कही गयी बातो को मानने की बात करता है तो वे पलटकर बुरा भला कहते हैं क्योंकि हमारा समाज हिन्दुत्व के जाल में बुरी तरह जकड़ चुका है और उन्होंने इस गुलामी को पूर्ण रूपेण आत्मसात कर लिया है ,जिसे वह हजारों वर्षों से ढोता चला आ रहा हैं।अश्वेतों को तो शारीरिक गुलामी मिली हुई थी जिन्होंने उसके छुटकारे पर लिंकन को बुरी तरह कोसा था, परन्तु हमारे समाज को तो ब्राह्मणों ने चमत्कार, पाखण्ड, अन्धविश्वास, ज्योतिष के जाल में फंसाकर मानसिक गुलाम बनाया हुआ है और अब वह इसी का आदी हो चुकने के कारण अपनी अज्ञानतावश इसी के रसास्वादन मे लगा हुआ है .शारीरिक गुलामी की बेड़ियों को गहना तथा मानसिक गुलामी की बेड़ियों को धर्म समझ कर गुलाम अपनी गुलामी पर गर्व करता है, जागरूकता के अभाव के कारण समझाने पर कुतर्क करता है, इसलिए गुलामों को जब तक गुलामी का एहसास नही करा दिया जाता तब तक वह अपनी बेड़ियां को तोड़ने को तैयार नहीं होंगा मनु के संविधान ने इंसानो को गुलाम बनाया और बाबा साहब के संविधान ने गुलामो को इंसान, परन्तु आज भी वह शारीरिक गुलामी की जंजीर को गहने और मानसिक गुलामी की जंजीर को धर्म समझकर छोड़ने के लिए तैयार नही है।
जिस दिन इस देश के असली मालिकों को अपनी गुलामी का एहसास हो जाएगा उस दिन वह अपनी शारीरिक एवम् मानसिक गुलामी की बेड़ियों को अवश्य उतार फेकेगा और तब उसके उत्थान को कोई रोक नही सकेगा!