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पेरियार जी के विषय में जानिए!
जिन्होंने दक्षिण भारत में बाबा साहब डॉ अम्बेडकर के आंदोलन को उनके साथ कंधे से कन्धा मिलकर लड़ा और दक्षिण भारत में बहुजनों को जगाया और ब्राह्मणों का अत्याचार काफी हद तक कम किया | उन्हीं के संघर्ष का परिणाम है कि आज वहां पर पचास प्रतिशत से भी अधिक बहुजन आरक्षण है| आईये ऐसे महान बहुजन नायक पेरियार इ0 वी0 रामास्वामी जी और उनके आंदोलन के बारे में जाने- बचपन- इरोड वेंकट नायकर रामासामी (17 सितम्बर, 1879-24 दिसम्बर, 1973) जिन्हें पेरियार (तमिल में अर्थ -सम्मानित व्यक्ति) नाम से भी जाना जाता था, बीसवीं सदी के तमिलनाडु के एक प्रमुख राजनेता थे। इन्होंने जस्टिस पार्टी का गठन किया जिसका सिद्धान्त रुढ़िवादी हिन्दुत्व का विरोध था। हिन्दी के अनिवार्य शिक्षण का भी उन्होंने घोर विरोध किया। भारतीय तथा विशेषकर दक्षिण भारतीय समाज के शोषित वर्ग को लोगों की स्थिति सुधारने में इनका नाम शीर्षस्थ है। बचपन से ही वे धार्मिक उपदशों में कही बातों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते रहते थे। हिन्दू महाकाव्यों तथा पुराणों में कही बातों की परस्पर विरोधी तथा बेतुकी बातों का माखौल भी वे उड़ाते रहते थे। बाल विवाह, देवदासी प्रथा, विधवा पुनर्विवाह के विरूद्ध अवधारणा, स्त्रियों तथा बहुजनों के शोषण के पूर्ण विरोधी थे। उन्होने हिन्दू वर्ण व्यवस्था का भी बहिष्कार किया। 19 वर्ष की उम्र में उनकी शादी नगम्मल नाम की 13 वर्षीया स्त्री से हुई। उन्होने अपना पत्नी को भी अपने विचारों से ओत प्रोत किया। काशी यात्रा और परिणाम- 1904 में पेरियार ने एक ब्राह्मण के भाई को गिरफ्तार करवाया, जिसका उनके पिता बहुत आदर करते थे। इसके लिए उनके पिता ने उन्हें लोगों के सामने पीटा। इसके कारण कुछ दिनों के लिए पेरियार को घर छोड़ना पड़ा। पेरियार काशी चले गए। वहां निःशुल्क भोज में जाने की इच्छा होने के बाद उन्हें पता चला कि यह सिर्फ ब्राह्मणों के लिए था। ब्राह्मण नहीं होने के कारण उन्हे इस बात का बहुत दुःख हुआ और उन्होने हिन्दुत्व के विरोध की ठान ली। इसके लिए उन्होंने किसी और धर्म को नहीं स्वीकारा और वे हमेशा नास्तिक रहे। केरल के नेताओं के निवेदन पर उन्होने वाईकॉम आन्दोलन का नेतृत्व भी स्वीकार किया जो मन्दिरों की ओर जाने वाली सड़कों पर बहुजनों के चलने की मनाही को हटाने के लिए संघर्षरत था। उनकी पत्नी तथा दोस्तों ने भी इस आंदोलन में उनका साथ दिया।