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क्या गौतम सिद्धार्थ क्षत्रिय थे ?
ब्राह्मण बुद्धिजीवी अकसर इस बात पर ज़ोर देते हैं कि बुद्ध क्षत्रिय थे । सिर्फ ज़ोर ही नहीं देते बल्कि लगभग निर्णय ही सुना डालते हैं । सिद्धार्थ की बात तो छोड़ ही दीजिये वे सीधे-सीधे बुद्ध को ही क्षत्रिय बना देते हैं । वे ऐसा क्यों करते हैं ? विचार करें तो पाएंगे कि ऐसा वे इसीलिए करते हैं ताकि बता सकें कि वे वर्ण-व्यवस्था के अंदर ही हैं बाहर नहीं । इससे उन्हें हिन्दू कहना आसान हो जाता है ।
जो नए-नए बौद्ध बने हैं उन्हें गौतम बुद्ध तथा ब्राह्मण देवताओं में अंतर समझ नहीं आता ।मानने के लिए मान भी लिया जाए कि सिद्धार्थ वर्ण-व्यवस्था के अंदर हैं लेकिन बुद्ध वर्ण-व्यवस्था के अंदर कैसे हो सकते हैं ? मेरे विचार में बुद्ध की बात तो छोड़िए सिद्धार्थ भी क्षत्रिय नहीं थे इस बात के पक्के सबूत हैं । ब्राह्मणो की बहुत निकृष्ट आदत है कि वे दुनिया को वर्ण-व्यवस्था या जाति-व्यवस्था के चश्में से ही देखते हैं । उनका बस चले तो ईसा मसीह ,मुहम्मद पैगंबर या गुरुनानक को भी वर्ण व्यवस्था के ढांचे में फिट कर डालें । किन्तु वहाँ दाल गलती नहीं है । वहाँ ब्राह्मण देव नपुंसक हो जाते हैं । दुनिया के लोग उनकी घटिया तथा विषमतावादी धारणाओं की धज्जियां उड़ा देंगे । ब्राह्मण का जन्म ही ब्रह्मा के मुंह से होता है तथा उनके अलावा कोई भी ब्राह्मण नहीं हो सकता । तब विश्व के लोग इस स्वयं के लिए इस निकृष्ट स्थिति को क्यों स्वीकार करेंगे ! ब्राह्मण लोग विदेशी लोग हैं । वे यूरेशिया के रहने वाले हैं । लगभग सारे अंग्रेज़ तथा सारे ब्राह्मण इतिहासकर तक इस पर एकमत है । यहाँ तक कि पंडा जवाहरलाल नेहरू , भटमान्य बाल गंगाधर तिलक , राहुल सांसकात्यायन , राममोहन रॉय , एमके गांधी जैसे प्रगतिशील तथा पोंगापंथी ब्राह्मण-बनिये भी एकमत हैं । डीएनए रिपोर्ट भी इसी बात को सिद्ध कर डालती है । इस बात के भी पर्याप्त सबूत हैं कि उन्होने ही सिंधु घाटी की सभ्यता के नगरों को नष्ट किया तथा वहाँ के लोगों को गुलाम बनाकर शूद्र-अतिशूद्र बनाया । गुलाम बनाने का यह काम एक झटके में पूरा होना संभव नहीं है । सिंधु घाटी सभ्यता के सभी लोगों को न तो धरती ने निगला होगा न ही आसमान ने खा लिया होगा । उनका अस्तित्व गौतम सिद्धार्थ के समय भी रहा होगा । हमें पता चलता है कि गौतम सिद्धार्थ के समय दो तरह की राज्य -व्यवस्था का अस्तित्व था । एक राजतंत्र व दूसरी गणतन्त्र । ऋगवेद में राजतंत्र का वर्णन है . राजतंत्र नामक व्यवस्था वेद की देन है । ब्राह्मणों की वर्ण-व्यवस्था की पूर्ति राजतंत्र में ही संभव है गणतन्त्र या लोकतन्त्र में नहीं । लोकतन्त्र अथवा गणतन्त्र ब्राह्मणो की वर्ण-व्यवस्था की असमता के खिलाफ सभी को समान अवसर के सिद्धान्त पर काम करती है । ब्राह्मण समानता के विरोधी हैं । सिद्धार्थ का जन्म एक गणतन्त्र में हुआ था । गणतन्त्र में राजा बारी बारी से बना जाता था । बिलकुल आधुनिक लोकतन्त्र के जैसे । अर्थात कोई भी राजा बन सकता था । राजा बनने के लिए ब्राह्मणी वर्ण -व्यवस्था के अनुसार क्षत्रिय होना जरूरी नहीं था । मतलब यह परंपरा निश्चित ही उन्हें उनके पूर्वजों से मिली थी । चूंकि यह समानता की परंपरा उनके पूर्वजों की थी अतः वे ब्राह्मणो की विषमताभरी वर्ण- व्यवस्था को मानने वाले लोग नहीं थे । यदि वे वर्ण- व्यवस्था को मानने वाले नहीं थे तो फिर राजा कैसे थे ? यह प्रश्न पैदा होता है । सीधा सा मतलब है कि वे ब्राह्मणो के पहले से ही इस देश में थे . मतलब वे ब्राह्मणों जैसे विदेशी नहीं थे बल्कि देशी थे ।

ब्राह्मणी वर्ण-व्यवस्था के अनुसार तीन वर्णों का जनेऊ संस्कार होता था । गौतम सिद्धार्थ का कोई जनेऊ संस्कार नहीं हुआ था । खेती किसानी ब्राह्मणो का पेशा नहीं था जबकि गौतम शुद्दोधन खेती करते थे । वर्ण-व्यवस्था के हिसाब से क्षत्रिय सन्यास गृहण नहीं कर सकते थे जबकि गौतम सिद्धार्थ ने वैसा किया था ।सबसे बड़ा सबूत यह है कि वर्तमान उत्तर प्रदेश में शाक्य लोग ओबीसी में आते हैं । इसका मतलब यह है कि परंपरा से वे लोग ब्राह्मणो के क्षत्रिय नहीं हैं वरन ब्राह्मणी व्यवस्था के बाहर के हैं । चूंकि क्षत्रिय न होकर भी स्थानीय गणतन्त्र के राजा रहे हैं अतः मूलनिवासी भी हैं ब्राह्मणो जैसे विदेशी नहीं । अब गौतम बुद्ध के बारे में जानते हैं । बुद्ध ने वेदों को नकार दिया । ईश्वर के अस्तित्व को नकार दिया । आत्मा -परमात्मा को नकार दिया । ब्राह्मणों के धर्म के विरुद्ध सभी को समान कहा । यज्ञ-बलि को नकार दिया । ब्राह्मणो के परम तत्व हिंसा को नकार दिया । अंधविश्वासों पर कडा प्रहार किया । ब्राह्मण धर्म के विरुद्ध सभी बातों को जांच-परखकर अपनाने को कहा । ब्राह्मणो की देवभाषा संस्कृत तक को नकार दिया और जनभाषा पाली को अपनाया । संक्षेप में कहें तो सारी की सारी ब्राह्मणी विचारधारा और उसके आधार को ही नकार दिया । फिर भी ब्राह्मण इतनी बेशर्मी से उन्हें क्षत्रिय क्यों कहते हैं ? मेरी नजर में वे ऐसा इसीलिए कहते हैं क्योंकि ऐसा करने से वे अपनी मिथ्या विचारधारा के हार जाने से बचना चाहते हैं । बाबासाहेब डॉ भीमराव आंबेडकर बुद्ध को नाग कहते हैं । भारत का इतिहास आर्यों और नागों की भयंकर लड़ाई का इतिहास है और कुछ नहीं । क्या अब भी आप उन्हें ब्राह्मणी धर्म के रक्षक"क्षत्रिय"