1920 से पहले देश में कोई हिन्दू नही था ना हिन्दू शब्द का प्रचलन था !
हर ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य अपनी जाति का जिक्र कर पहचान जाहिर करता !
मैं ब्राह्मण हूँ, मैं राजपूत हूँ, मैं वैश्य हूँ !
तू धोबी है, तू अहिरा है, तू चमार है, तू वो है तू ये है तू दूर रह !
उस समय हर कोई जाति से पहचाना जाता !
मुग़ल साम्राज्य में करोड़ों शूद्र जाति के डंक से बचने के लिए मुसलमान बने, ईसाई बने, लाखो शूद्रों ने सिख धर्म को भी अपनाया लेकिन उस समय धर्मांतरण से ब्राह्मणों को कोई तकलीफ नही हुई !
लेकिन 1920 के बाद जैसे ही साम्राज्य गिरने लगे और राष्ट्र की कल्पना अस्तित्व में आने लगे ! तब राज करने के लिए शासक वर्ग को तलवार हाथी घोडा लेकर दिल्ली पर हमला करने जैसी बात खत्म हो गई और राजनीती के सहारे प्रतिनिधित्व साबित कर राज करने का प्रयोग शुरू हुआ !
भारत में चार बड़े धर्म और हज़ारों जातियाँ का प्रतिनिधित्व करना था, किसे किस वर्ण जाति का प्रतिनिधि कहने का अधिकार है ? कौन किस धर्म का प्रतिनिधित्व करेगा ? कौन मजदूरों के लिए खड़ा होगा ?
कौन किस वर्ग का प्रतिनिधित्व करेगा की राजनीती की शुरवात हुई !
सबसे बड़ा मसला उभरा करोड़ो अछूतों का प्रतिनिधित्व कौन करेगा ?
ब्राह्मण धर्म सुधारकों को लगा अगर अछूतों का अलग से प्रतिनिधित्व हुआ तो ब्राह्मण धर्म माइनॉरिटी में आ जायेगा और मुस्लिम सत्ता पर हावी हो जायेंगे ?
एक षड़यंत्र के तहत ब्राह्मण धर्म सुधारकों ने अछूतों को हिन्दू बताना शुरू किया और छुआ छुत मिटाने का ड्रामा करने लगे !
अछूतों को हिन्दू बनाकर ब्राह्मणों ने प्रतिनिधित्व की पॉलिटिक्स में अपना पल्ला भारी कर लिया !
ब्राह्मणों ने अछूतों को हिन्दू धर्म महल में जगह तो दी लेकिन सर्वेंट क्वार्टर में रखा !
वर्त्तमान में भी मुसलमानों का डर आतंक की हवा बनाकर ब्राह्मण ओबीसी एससी एसटी को हिन्दू बनाकर रखें हुए हैं !
छोड़ दो हिन्दू धर्म महल का सर्वेंट क्वार्टर, आओ चले मिलकर बनाए अपना नया महल जिसमे सर्वेंट क्वार्टर ना हो !
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