1. लालूप्रसाद संवैधानिक सामाजिक न्याय के आन्दोलन के सच्चे नेता.
2. लालूजी को जाति का नेता कहेना RSS के ब्राह्मणों और मनुवादी मिडिया का भ्रामक षड्यंत्र.
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लालूप्रसाद जी 1974 में पटना यूनिवर्सिटी के छात्र नेता थे. जातिवादी होते तो यादव महासभा के छोटे पद से क्यों नहीं जुड़े.? कोलेज के छात्रो में अपरकास्ट छात्रो का प्रभुत्व होता है. फिर भी छात्र नेता क्यों बने सके ?
जयप्रकाश नारायण ने जाति छोडो, जनेऊ तोड़ो आन्दोलन चलाया था, जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन छात्र नेता के रूप में लालूप्रसाद यादव जुड़ गए थे.
जातिवादी होते तो लालूप्रसाद जेपी आन्दोलन से क्यों जुड़ते ?
यादव महासभा से क्यों नहीं जुड़ते ?
युवा लालूजी की प्रतिभा देखकर जेपी ने छपरा से टिकेट देने की सिफारिस की और 1977 में 29 साल की उम्र में लालूप्रसाद छपरा से जनतापक्ष के सांसद चुने गए.
1980 में बिहार विधानसभा में प्रथम बार MLA, 1985 में दूसरी बार MLA बने और 1988 में विपक्ष के नेता कर्पूरी ठाकुर के निर्वाण के बाद 41 साल की उम्र में विपक्ष के नेता चुने गए.
जेपी और कर्पूरी ठाकुर यादव नहीं थे. संवैधानिक सामाजिक न्याय के आन्दोलन से जुड़े नेताओ थे. लालूप्रसाद अगर जातिवादी होते तो जेपी और कर्पूरी ठाकुर से नहीं जुड़ते, जातिवादी होते तो जनतापक्ष उन्हें 1988 में विपक्ष नेता क्यों बनाते ?
1989 में सांसद. 1990 में बिहार के मुख्यमत्री के रूप में जनतादल के हाईकमान देवीलाल, वीपीसिंह और शरद यादव का समर्थन लालूजी को मिला और 43 साल की उम्र में लालूजी बिहार के मुख्यमंत्री भी बन गए.
लालूप्रसाद यादव के छात्र काल के साथी नितीश कुमार और रामविलास पासवान रहे. 1997 तक साथ राजनीति में भी साथ रहे. दोनों यादव नहीं थे. बिहार में डॉ. लोहिया, जयप्रकाश नारायण, डॉ. रामस्वरूप वर्मा, जगदेवप्रसाद कुशवाहा और कर्पूरी ठाकुर के संवैधानिक सामाजिक न्याय के आन्दोलन ने लालूप्रसाद का घड्तर किया था.
"चाहे जमीन आसमान में लटक जाए, चाहे आसमान जमीन पर गिर जाए, मगर मंडल कमीशन लागू होकर रहेगा। इस पर कोई समझौता नहीं होगा।" - लालू प्रसाद. ये बात लालूप्रसाद यादव में 1990 में मंडल लागु होने के बाद कही थी.
लालूप्रसाद यादव ने बिहार में 27% मंडल आरक्षण लागु कर दिया. क्या 27% मंडल आरक्षण सिर्फ बिहार के यादवो के लिए था या बिहार की सभी ओबीसी जातियों के लिए था.
लालूजी को जाति का नेता कहेना RSS मिडिया का भ्रामक षड्यंत्र.
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बिहार में भंगी से लेकर ब्राह्मण तक संवैधानिक सामाजिक न्याय को माननेवाले लोगो का व्यापक समर्थन लालूजी को 1990 से 1995 तक बदता गया. 1995 में हुवे बिहार विधानसभा के चुनाव में लालूप्रसाद यादव के नेतृत्व की वजह से जनतादल को स्पष्ट बहुमत मिला और लालूजी फिर मुख्यमंत्री बन गए.
किसी एससी- एसटी या ओबीसी मुख्यमंत्री को बिहार में अपरकास्ट ने 5 साल का कार्यकाल पूरा करने नहीं दिया गया था। श्रीकृष्ण सिंह के बाद सफलतापूर्वक अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा करने वाले लालू प्रसाद पहले मुख्यमंत्री थे।
आझादी पहेले से कुर्मी, यादव और कोइरी के 'त्रिवेणी संगम' के सामाजिक संगठन में अन्य ओबीसी जातियों भी जुडी हवी थी. यही मुख्य जनाधार जनतादल का था. इस जनाधार के पीछे जगदेवप्रसाद कुशवाहा जैसे ओबीसी एससी और एसटी नेताओ ने अपना खून और पसीना बहाया था.
बिहार में अपरकास्ट का जातिवादी प्रभुत्व ध्वस्त हो चूका था. उसे पुनः स्थापित करने के लिए जनतादल के बिहार में बढ़ चुके जनाधार को धवस्त करने के लिए RSS के नेताओ ने षड्यंत्र रचा और प्रचार शुरू किया कि लालूप्रसाद यादव जातिवादी है और M - मुस्लिम Y - यादव गठजोड़ के आधार पर चुनाव जीतते है.
त्रिवेणी संगम के घटक कुर्मी और कोइरी में इस दुष्प्रचार का मार्केटिंग RSS के अपरकास्ट प्रचारको के माध्यम से शुरू किया गया. RSS के मिडिया में रहे अपरकास्ट पत्रकारों ने उस का प्रचार प्रसार अविरत चालू रखा. इस दुष्प्रचार से भ्रमित हुवे जनतादल के कई नेताओ RSS ने भाजपा के साथ गठबंधन के जोले में डालने का कार्य किया.
लालूप्रसाद यादव न छात्रजीवन में कभी जातिवादी रहे. न राजनीति में जातिवादी रहे है और मृत्यु तक अब जातिवादी नहीं हो सकते. ये बात 1990 में 5 से 15 साल के ओबीसी बच्चे नहीं जानते, जो आज आज 2018 में 33 से 43 साल के हो चुके है, वे भी नहीं जानते.
तब प्रश्न यह है कि जो ओबीसी बच्चे 1990 में या बाद में जन्मे है, ऐसे 19 साल से 32 के ओबीसी युवाओ कैसे जान सकेंगे की लालूप्रसाद यादव का गठजोड़ रामस्वरूप वर्मा और जगदेवप्रसाद कुशवाहा का 90% का गठजोड़ है ?
लालू यादव जी एक ऐसा नाम है जिसका नाम सुनते ही यूरेशियन आर्यों की पेंट गीली हो जाती है।
जिन Sc,St,Obc को 1990 तक बिहार में सवर्ण समाज के लोग खटिया पर नहीं बैठने देते थे आज वही बहुजन समाज के नालायक कह लालू यादव ने हमारे लिए क्या किया।
आज लालू यादव जी की कमी खल रही है आज अगर लालू यादव जी जेल से बाहर होते तो इन विदेशी आर्यों की बेंड बजा देते और यह चुनाव इवीएम की जगह बैलेट पेपर से होते
इसी डर के कारण विदेशी यूरेशियन आर्य निर्दोष लालू यादव जी को जेल से बाहर नहीं आने दे रहे है सजा काटने के बाद में भी यूरेशियन मनुवादी मोदी ने फिर दबाव बना के फिर से जेल में डलवा दिया था और असली चारा चोर जगन्नाथ मिश्रा बाहर घुम रहा है।
तभी इन विदेशी आर्यों ने लालू यादव जी को चारा घोटाले में जानबूझकर फंसाया था असली चारा चोर तो जगन्नाथ मिश्रा था ।।
बहुजन समाज की राजनैतिक के तीन चैहरे मा. कांशीराम जी,,मा. मुलायमसिंह जी,,मा. लालूप्रसाद यादव जी इन तीन महान नेताओं ने बहुजन समाज की अपने दम पर तीन पार्टियों सपा,बसपा,जेडयू का परचम लहराया था
बसपा,,सपा,जनता दल यूनाइटेड, आज यही तीन पार्टियां खत्म होने के कगार पर कारण अखिलेश जी,मायावती जी, तेजस्वी यादव जी, के अच्छे नेतृत्व की कमी के कारण इन तीनों ने कभी भी जमीनीस्तर पर कार्य नहीं किया
राजनीति में आने से पहले इतिहास सिखना बहुत जरूरी है जो इतिहास से सिख नहीं लेता है वो संसद में थोड़े समय तक ही टिक पाते है।
इनमें अच्छे नेतृत्व के कमी के कारण आज यह पार्टियां राज्य तक ही सीमित है अगर आज अगर कांशीराम जी,मुलायमसिंह जी,लालूजी अगर इन पार्टियों का नेतृत्व करते तो पूरे भारत में फैल जाती इन तीनों पार्टियों में से एक पार्टी आज सता में होती।
अखिलेश जी,मायावती जी,तेजस्वी जी को कांशीराम जी,मुलायमसिंह जी,लालूप्रसाद यादव जी के दिखाए रास्ते पर चलना होगा भटक गए रास्ते से इन तीनों के हार का कारण यही है गलत के खिलाफ आवाज नहीं उठाना,, अपने समाज को दरकिनार करना,,जमीनीस्तर पर कार्य नहीं करना,, और अपने समाज पर हो रहे अत्याचार पर चुप रहना यही कारण है इनकी हार का।
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